बुधवार, 6 मई 2015

HIT AND RUN ... ARE WE TRUE INDIAN !!!

                                                                                     
                     

                                                - विशाल सूर्यकांत शर्मा -

   आज का दिन सलमान ख़ान के नाम...। पब्लिसिटी से लेकर पनिश्मेंट तक का सलमान का सफर !
तेरह साल पुराने हिट एंड रन मामले में सलमान खान अपराधी साबित हो गए और अब जेल जाना पड़ेगा। सज़ा पर हाईकोर्ट में आगे सुनवाई हो सकेगी और हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खुला है। लेकिन इस सफर में कितना वक्त लगेगा और ना जाने कितने दिन जेल के भीतर और जेल के बाहर गुजरेगा, ये अभी तय नहीं। आज सलमान पर तो दुनिया बात कर रही है लेकिन मैं बात करूंगा उस समस्या कि जिसमें असल जिंदगी में कोई भी कभी भी अनचाहे सलमान खान का रोल निभा जाता है। ये समस्या है हिट एंड रन की...।

हिट एंड रन; सेलिब्रिटी केसेज से चर्चा में आया ये शब्द.., हमारे देश की सड़कों में आए दिन अपनी सूरत दिखाता है। पुलिस थानों की रिपोर्ट और अखबारों की कतरनें, ऐसे मामलों से भरी पड़ी है कि एक शख्स को अज्ञात वाहन टक्कर मार गया । गाड़ी चलाने वाले का लाईसेंस था या नहीं, शराब पी है या नहीं, ये तो पड़ताल तब होती है जब कोई पकड़ में आ जाता है। मेरा दावा है कि देश में 70 फीसदी मामलों में तो टक्कर मारने वाला पकड़ में ही नहीं आता। आलम ये हैं कि आप सड़क पर चले जा रहे हों और कोई भी आपकी कोहनी पर अपनी दुपहिया गाड़ी का मिरर जोर से टकरा कर चलता बनेगा। टक्कर के बाद, अपनी रफ्तार बढ़ाने के साथ पीछे मुड़ कर वो शख्स आपको गरियाना नहीं भूलेगा, ऊंची आवाज से तो बोलेगा ही, ...और अपनी आंखों की पुतलियां घूमाते हुए आपको आपके गंवारपन का अहसास करवाएगा सो अलग...।
आप चाहे किसी उधेडबुन में हों या फिर मस्त मौला मूड़ में लेकिन आपके अच्छे-खासे मूड़ का कोई भी जायका बिगाड़ सकता है। रोज देखने में आता है कि कुछ लोग तो सड़क पर ऐसे गाड़ी चलाते हैं मानों गाड़ी नहीं बल्कि आसमान में अंतरिक्षी रॉकेट उड़ा रहे हो। हवा के रूख को चीरते हुए कई मनचले शोहदे आपको सड़क पर स्टंट दिखाते मिल जाएंगे। आपकी किस्मत हैं कि सड़क पर चलते हुए उस वक्त, आपसे कोई गफ़लत नहीं हुई, वरना तो सड़​क पर गाड़ियां दौड़ाते ये लोग , कब यमदूत की शक्ल में आपको चपेट में ले लें और हवा तक ना लगें ।
इंसान के मिजाज से जु़ड़ा बुनियादी सवाल पूछता हूं कि क्या गाड़ी में बैठकर इंसान का ओहदा बदल जाता है ??? सड़क पर चलने वाले, फुटपाथ पर सोने वालों के सामने गाड़ी में बैठकर गुजरने वाला शख्स ऐसा मिजाज क्यों अपना लेता कि भैय्या !!! अपन को आम आदमी समझने की गलती मत कर देगा, अपना मामला ज़रा वीआईपी केैटेगरी वाला है।
कनअखियों से देखते हुए... तो कभी घूरते हुए, गहरी सांसें लेते हुए या फिर गरियाते हुए आपको राह चलते  ' जाहिल ' साबित करने वालों की कमी नही हैं हमारे देश मे। ये तो रहा गाडी चलाने वालों का मिज़ाज...।
मगर इसका मतलब ये नहीं है कि स़ड़क पर चलने वाला कोई निरीह प्राणी है, बेचारगी का मारा हुआ है और सारी गलती गाड़ी चलाने वालों की ही होती है। हिट एंड रन...के मामलों की असल जड़ को सड़कों पर दुर्घटना के समय भीड़ का बर्ताव है। अपने-अपने दिल में झांकिए और बताईए कि क्या सलमान खान, अगर वहां से नहीं भागता तो भीड़ उसे चुपचाप पुलिस के हवाले कर देती ??? चलिए, सलमान खान को छो़ड़िए ये आप खुद पर लागू करके देखिए कि अगर आपके हाथ से कोई हादसा हो गया तो क्या आप वहां रुक कर सुरक्षित महसूस कर सकते हैं ?हम सब की जिंदगी खासी तनाव भरी है। ऐसे में, खुद या किसी और को  टक्कर मार देने वाला कोई भी शख्स हमें सॉफ्ट टारगेट नजर आता है।
लिहाजा, अपनी जिंदगी का पूरा फ्रस्ट्रेशन हम उस घड़ी में निकालते हुए बेचारे गाड़ी चलाने वाले निकालते हैं और आफत बनकर पर टूट पड़ते हैं, उस इंसान पर जो या तो अनचाही टक्कर के बाद या तो ... खुद भलमनसाहत से रुका ... या फिर मौक़े की नजाकत को संभालने में नाकामयाब रहा और आपके चंगुल में फंस गया। मेरा दावा है कि टक्कर से घायल की सुध लेने वाले तो कम मिलेंगे लेकिन शर्तिया तौर पर कह सकता हूं कि आपको चांटे रसीद करने वालों की तादाद इतनी होगी कि आप गिन नहीं पाएंगे। हादसे के बाद बदसलूकी करना ये हमारे देश की जनता में आम चलन है। इसमें ना तो जाति-धर्म का भेद है और ना ही राज्यों की सीमा का।

 भीड़ का संविधान देखिए कि हादसे के बाद अगर कोई जैसे-तैसे कोई निकल भागा तो भीड़ गाड़ियों को आग के हवाले कर देती है, सड़कों पर जाम लगा देती है। जिन मानवीय संवेदनाओं के नाम पर टक्कर मारने वाले को घेरा जाता है, वहीं संवेदनशीलता, गाड़ियों को जलाते,सड़कें जाम करते वक्त अराजकता में बदल जाती है। ये मामला साधारण नहीं है। अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल ही में मन की बात में इसका जिक्र किया है। 


दरअसल, हम भारतीय हर मामले में दो अलग चेहरे लेकर चलते हैं। एक चेहरा खुद की प्रस्तुति के लिए और दूसरा चेहरा भीड़ में शामिल होने के लिए। सड़कों पर रोडरेज की होड़ करने वाले, आपको घूरने वाले, गरियाने वाले, सड़क पर ग़लत तरीके से चलने वाले, पुलिस को कोसने वाले, मारपीट करने वाले हम लोग ही तो हैं। बस, फर्क़ ये हैं कि सड़क पर पैदल चलते हुए हमारा नज़रिया कुछ और होता है और गाड़ी चलाते हुए कुछ और...।

सलमान खान के साथ तो दिक्कत ये हो गई कि वो सेलिब्रिटी था, भागने के बावजूद भी पुलिस ने धर दबोचा। मगर आप और हम तो सड़क पर रोज कभी गुनाहगार और कभी शिकार बन जाते हैं। मामूली हादसे का शिकार बन गए तो ढ़िढोरा सहानूभूति बटोरने में हम पीछे नहीं रहते और गुनाहगार बन जाए तो उम्मीद करते हैं कि किसी को कानों-कान ख़बर तक ना हों। दरअसल,हमनें सड़क को हमारी अपनी संपत्ति मान ली है। जब तक हम सड़क पर चलने का सलीका सीखने के साथ ही जब तक हादसों पर प्रतिक्रिया का सलीका नहीं बदलेंगे... तब तक....एक नहीं, कई सलमान खान होंगे...एक नहीं...कई हिट एंड रन मामले होंगे....

 - विशाल सूर्यकांत शर्मा 
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लेखक -: पत्रकार - फर्स्ट इंडिया न्यूज़,राजस्थान में हैड,इनपुट हैं। 

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