गुरुवार, 7 मई 2015

@Abhijeetsinger # बाबूजी....इसीलिए हम सोते हैं फुटपाथ पर

      
              विशाल सूर्यकांत शर्मा 
अभिजीत बाबू , मैं आपका वो फैन तो नहीं जो पागलपन की हद तक चला जाऊं लेकिन हां, आपके गाने मैं शिद्दत से सुनता हूं, समझता हूं। मुझे आपकी आवाज बहुत पसंद है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आपकी हर बेवकूफी भी मुझे पसंद आए !!!  क्या बेवकूफी भरा ट्विट किया है साहब ...!  उम्मीद है कि इसके पीछ चीप पब्लिसिटी की आरजू ही रही होगी, क्योंकि अगर वाकई ये आपकी सोच हैं तो मुझे आपके इंसान होने पर ही शर्म आ रही है। 

सलमान ख़ान को सज़ा हो गई तो क्या गलत हो गया ? 13 साल तक उन्हें अपनी बेगुनाही को साबित करने
और अपराधी होने के बावजूद फिल्मों में काम करने का भी खूब मौक़ा मिला। इन तेरह सालों में उनकी फिल्मों ने करोड़ो कमाए...और आपको मालूम है कि उनकी फिल्में चलाने के पीछे उनके सिर्फ़ वो फैन ही नहीं हैं जो आपकी तरह आलिशान बंगलों में सोते हैं। उनकी फिल्मों की कामयाबी के पीछे आप जैसे लोगों से कई गुना ज्यादा वो लोग हैं जो फुटपाथ पर सोते हैं। कभी-कभी भूखे भी रहते हैं लेकिन अपनी दिन भर की कमाई का एक हिस्सा इसीलिए फिल्मों पर खर्च करते हैं ताकि एक अदद टिकट के
बदले, चंद घंटों में वो अपने लिए सुनहरे सपने खरीद कर ला सकें।   


'' अभिजीत जी, आप कैसे ऐसा लिख सकते हैं ??? अपनी सफाई में फिर कह रहे हैं कि किसी देश में ऐसा नहीं होता। अरे, आप ये बताईए कि कौनसे देश का कानूून फुटपाथ पर सोते कुत्ते को भी कुचल डालने का हक़ देता है ? ...आप उस देश में रहते हो, जहां कोई कुत्ता भी गाड़ी के नीचे आ जाए तो परिवार के लोग अपने ही घर के उस शख्स को कोसने से नहीं चूकते, जो गाडी चला रहा होता है।''


आपके ट्विट से उपजी पीड़ा ने  मुझे मजबूर किया कि मैं फुटपाथ का रुख करूं और आपके जेहन में उठी निहायत ही घटिया सोच का माकूल लेकिन गंभीर जबाव दूं। कोई आखिर फुटपाथ पर क्यों सोना चाहेगा??? क्या ये वाकई उनके लिए लाइफ का एडवेंचर है ???  मुंबई की फुटपाथ हो या जयपुर की...मुझे लगता नहीं कि कोई ज्यादा फर्क होगा दोनों में। आपके शब्दों में कहूं तो जिंदगी यहां और वहां दोनों जगह उसी जानवर की तरह ही होगी। 
चलिए मेरे साथ जयपुर की फुटपाथ पर इधर-उधर बिखरी जिंदगियों में कुछ झांकते हैं...और वाकई पूछते हैं कि फुटपाथ पर क्यों सोते हो भाई ???   ​

नाम- रवि, निवासी-पूना 
स्थान-नारायण सिंह सर्किल
समय-6 मई,रात 9.30 बजे

- मायानगरी के नजदीक का शहर छोड़ कर जयपुर इसीलिए आ गया क्योंकि यहां के बारे में सुना था कि यहां बेगारी करने वालों की भीड़ कम है। दिन भर बेगारी के बाद सोने की पसंदीदा जगह है नारायण सिंह सर्किल का फुटपाथ। 

सवाल- फुटपाथ पर क्यों सोते हों ?
जबाव- कमरे के लिए पैसा नहीं, दिन में कमाई बस इतनी भर हैं कि पेट भर जाए। घर-परिवार नहीं है।

सवाल- डर नहीं लगता कि कोई शराब पीकर गाडी फुटपाथ पर चढ़ा दे तो ...?  
जबाव- हां वो तो हैं, इसीलिए दीवार से सटकर सोते हैं...और रात भर गाड़ियों की बत्तियों से गहरी नींद नहीं आती। 

सवाल- सलमान खान और सिंगर अभिजीत को जानते हों ? 
जबाव- हां, अभी पेपर में पढा उनको सजा हो गई । अभिजीत ( कुछ सोचते हुए) हां, चांद तारे तोड़ लाऊं वाला, अच्छा गाता है। 

सवाल- सिंगर अभिजीत ने कहा कि फुटपाथ पर तो (***)  सोते हैं 
जबाव- कुछ पल खुद में खो गया और फिर बोला- ये बात तो गलत बात हो गई साहब !  फिर भी ...सही बात कह रहा है वो ...क्या करें ??
  
सवाल- सोने के लिए ऐसी रोड क्यों , जहां दिन-रात भारी ट्राफिक चलता है ? 
जबाव- साहब ! शहर की गलियों में कोई सोने नहीं देता, उन्हें लगता है कि कोई चोर है। हम भी सोचते हैं कि कहीं कुछ हो गया तो पुलिस वाले और कॉलोनी वाले हम पर ही सबसे पहले आरोप लगाएंगे। इसीलिए यहां ऐसी रोड पर सोते हैं जहां सबको पता रहता है हम कब सो रहे हैं,कब जाग रहे हैं। फालतू में ऐसा काम क्यों करना कि कोई आरोप लगाए ?? 
                                                                   चलिए दूसरी लॉकेशन पर ...   




नाम-शंकरलाल, निवासी-पन्ना-शहडोल( मध्यप्रदेश) 
जगह- सवाई मानसिंह अस्पताल के बाहर,जयपुर 
तारीख- 6 मई, समय रात - 10 बजे

सवाल- पैरों से विकलांग हो तो फिर ट्राफिक में क्यों घूम रहे हो ? 
जबाव- साहब ! मेरे लिए गाड़ी लेने जयपुर आया था। 

सवाल- कौन सी गाड़ी ? 
जबाव- हमारे जैसे लोगों के लिए गाड़ी, वो पन्ना में एक मैडम लिख कर दी थी कि जयपुर चले जाओ, गाड़ी मिल जाएगी। 

सवाल- वो गाड़ी तो वहां भी मिल जाती, शहडोल से जयपुर क्यों आए ? 
जबाव- पता नहीं, मैडम चिठ्ठी बना कर दी है, इसीलिए आ गये थे । 

सवाल- गाड़ी मिल गई ? 
जबाव- नहीं साहब, अभी तो कोई चिठ्ठी ही नही मान रहा है, घर जाने के भी पैसे नहीं। 

सवाल- चिठ्ठी हैं तुम्हारे पास ? 

जबाव- हां, साहब....( जेब में प्लास्टिक की थैली में बंद की हुई चिठ्ठी को निकाल कर दिखाते हुए...
( इस चिठ्ठी में कुछ नहीं लिखा है सिवाय इसके कि इन्हें कहीं भी विकलांग साइकल मिल सकती है ) 
ना जाने किसने इसे सलाह दी ? और जयपुर भेज दिया साइकल की आस में ...!!! अब साइकिल तो मिली नहीं तो घर किस मुंह से जाए तो सवाई मानसिंह अस्पताल के बाहर ही बना लिया ठिकाना।

सवाल- फुटपाथ पर क्यों सोते हो ? 
जबाव- साहब ! अभी पिछले महिने ही हम सो रहे थे तो कोई सारे पैसे और सामान ले गया। इसीलिए भीड़ में ही रहते हैं, यहां रात भर ऐसे ही रहता है, तो हम भी आराम से रह लेते है।   
   
                         चलिए अगली लॉकेशन पर 

नाम- बनवारीलाल,बांदीकुई, राजस्थान
स्थान- बाईस गोदाम ब्रिज, जयपुर 
समय- 6 मई, रात- 10.30 बजे 

सवाल- तुम एक बात बताओ, फुटपाथ पर क्यों सोते हो ? 
जबाव- सोने की जगह नहीं साहब 

सवाल- क्यों, सरकार बनाती है रैन बसेरे, वहां क्यों नहीं जाते ? 
जबाव- साहब, वहां एक बार गए थे, कई तरह के लोग वहां आते हैं, लूटपाट करते है, इसीलिए नहीं जाते। 

सवाल- यहां तो रात भर ट्रक चलते हैं, गाड़ियां आती हैं, डर नहीं लगता कोई चढा देगा तो फिर...
जबाव- साहब, मजदूरी कर रहे हैं, इतना तो भगवान पर भरोसा करना पड़ेगा ना, ऊपर चढ़ा देगा तो ऊपर वाला कुछ तो देखेगा। यहां आजकल लूट बहुत होती है, एक बार किराए पर लाए थे साईकिल रिक्शा, गली में सोने चले गए थे, रात में दो तीन लोग आकर लूट ले गए। अब साइकिल का पैसा भी भरना है और अपना काम भी चलाना है ... तो कचरा बीन लेते हैं। 

सवाल- तुम लोग ऐसे रहते हो तो फिल्म वाले कहते हैं ये ( कु**) वाली जिंदगी है। 
जबाव- हम तो अपनी मजदूरी करके आराम से रहते हैं, कोई हमको (कु**) कहेगा तो सुन लो, हमसे बडा वो (कु**) है। बाऊजी तुम ही बताओ, इतनी देर बैठे तो हमने कौन सा काट लिया आपको ??? 

                                                                            ---- ***----

शोहरत की बुलंदी पर बैठे अभिजीत जी, मेरी सलाह हैं कि आप भी मेरी तरह मुंबई की सड़कों पर उन लोगों के बीच कुछ घंटे बिताईए.. जिन्हें आप इंसान नहीं कुत्ता समझते हैं। हो सकता हैें कि आपकी फिल्मी दुनिया धोखेबाजी और साजिशों से घिरी होगी लेकिन मेरा दावा है कि इनके बीच जाओगे तो अपना बिछाया अखबार भी आपको देकर बिठाएंगे ये लोग।

किसी के साथ मजबूरी है तो किसी के साथ मेहनत की खुद्दारी। अपने बंगले के बाहर तो हम इन्हें सोने नहीं देते और फुटपाथ पर सोएं तो इंसान और कुत्ते में फर्क नही रखते...। क्या गुरबत में जीने का हक़ भी छिन लिया जाता है ??? जीना भी गुनाह हो गया क्या इनका ??? आपके ट्विट में लिखा हैं कि आप जेब में एक पैसा नहीं था तो भी सड़क पर नहीं सोए। 

साहब, आपकी आरजू तो बस एक सिंगर बनने की ही रही होगी...यहां तो जुस्तजू अपना पेट भरने की है, यहीं इनकी रोज़ की जंग है और ये जंग नहीं लड़नी पड़े ये है इनका सपना ।  आप गुनगुनाते हों कि चांद तारे तोड लाऊं, सारी दुनिया पर मैं छाऊं बस इतना सा ख्वाब है.... । सारी दुनिया पर छा जाने का ख्बाव अभिजीत सिंगर का होगा। मगर इनका ख्वाब तो बस ये हैं कि रोज़ अपना और अपने परिवार का अच्छे से पेट भरने का है। ... इसीलिए फुटपाथ पर सोते हैं ये लोग....

अभिजीत जी, आप चाहते तो आरटीआई लगाकर सरकार से पूछते कि आखिर इन लोगों के नाम पर इतना भारी भरकम इनकम टैक्स काटने के बावजूद भी सरकार कुछ क्यों नहीं कर रही ? क्यों स्ट्रीट वेंडर्स पॉलिसी कामयाब नहीं होती ? क्यों बेगर्स और मजदूरों के रिहेबिलिटेशन की कोई पॉलिसी नहीं है ? जो चुनी हुई सरकारें हैं वो क्यों अपना काम नहीं कर रही ? 

मुझे पता है कि आप कहोगे कि इस काम के लिए तो आप जैसे पत्रकार हैं।  क्योंकि आप जैसे लोग इतने डरपोक होते हैं कि ना तो सवाल पूछने की हिम्मत रखते हैं और ना ही जिम्मेदारी लेने से। आप ट्विटर पर उन लोगों को इसीलिए कुत्ता कह गए क्योंकि आपको पता हैं कि जिसके पेट में खाना नहीं वो ट्विटर पर आपको कैसे जबाव देगा ? आप इनकी गरीबी का सवाल सरकारों और रसूखदारों से करने की हिम्मत भी सिर्फ इसीलिए नहीं दिखा सकते क्योंकि ना जाने कितने सरकारों के मंत्री, रसूखदार और अंडरवर्ल्ड की महफिलों में आप जैसे सुपर स्टार, सुपर सिंगरों ने दुम हिलाई हुई होगी। माफ कीजिएगा, ये मेरे लिखने की स्टाइल नहीं है लेकिन आपने आज मजबूर कर दिया। 
  



विशाल सूर्यकांत शर्मा
पत्रकार- फर्स्ट इंडिया न्यूज में इनपुट हैड
Contact- +919001092499
Email- contact_vishal@rediffmail.com
            vishal.suryakant@gmail.com
  












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