मीडिया
#GoBackIndianMedia ...हंगामा क्यों हैं बरपा ???
#GoBackIndianMedia, #GoHomeIndianMedia जैसे ट्विटर हैंडल के जरिए भारतीय मीडिया पर जमकर हमले हो रहे हैं। खूब चर्चा हो रही है कि इंडियन मीडिउ,नेपाल की व्यथा को बेंच रहा है। रिपोर्टिंग कम, किसी टीवी सीरियल की तरह शूटिंग ज्यादा हो रही है। नेपाल के लोगों के हवाले से इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर ऐसे-ऐसे तंज कसे जा रहे हैं, ऐसे जॉक्स चल रहे हैं कि मानों इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया, मीडिया ग्रुप्स ना होकर बंच ऑफ इडियड्स हो। कुछ तो भाई ऐसे हैं जो ट्विटर पर इंडियन मीडिया के रवैये पर दुनिया भर के लोगों से माफी मांग रहे हैं। कुछ पुराना राग अलापते हुए इसे टीआरपी का खेल मान रहे हैं तो कुछ लोग इसे टफ कम्पिटिशन में इनसेन्सिटिव रिपोर्टिंग करार दे रहे हैं। लेकिन मैं आपसे जानना चाहता हूूं कि अगर ये सच भी हैं तो सालों से चला आ रहा है, अचानक ऐसा विरोध क्यों, ऐसा क्या हो गया ??
चंद पलों की जमीन के भीतर की हलचल, नेपाल का नक्शा ही बिगाड़ गई, जमीन पर लाशों के ढ़ेर लग गए। मकान, मलबे में बदल गए। इस पीड़ा को उजागर करने के लिए जो लोग पीड़ित हैं, उनसे कुछ तो सवाल पूछने ही होंगे !!! भारतीय मीडिया ही क्या, किसी भी देश की मीडिया यहीं सवाल करती आई है। भले ही ये सवाल आपको बचकाने लगें लेकिन आम आदमी से आप ये तो नहीं पूछ सकते कि बताओ ; भूकंप की रिक्टर पैमाने पर इन्टेन्सिटी क्या थी ??? अक्सर इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर ये तोहमत लगती है कि ये मीडिया वाले कुछ भी सवाल पूछते हैं। मेरा सवाल उन्हीं लोगों से हैं कि आप बताओ कि क्या पूछें ? किसी की मौत पर परिवार वालों से पूछना, जानकारी लेना, ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बुनियादी जरूरत है, ठीक वैसे ही जैसे अदालत में अपराध की जानकारी होने के बावजूद भी फरियादी से, आरोपी से जिरह होती है।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वसनीयता ही इसी बुनियाद पर टिकी है कि आप असलियत में वो ही दिखा रहे हैं जो कि हकीकत है। विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा उतरने के लिए आपको ऐसे विजुअल्स ( वीडियो) भी चाहिए और ऐसी बाइट्स( लोगों के इंटरव्यू) भी चाहिए।

... यहां मामला अंडरस्टूड नहीं होता, कहानी कहने के लिए किरदार तो गढ़ने ही पडेंगे ना साहब...!!! सिर्फ ज्ञान बांटने से ही काम चलता तो फिर स्टूडियो के बंद कमरे ही ठीक थे, फील्ड रिपोर्टिंग इसीलिए ही तो हो रही है कि जमीनी सच्चाई सामने आए । किसी से उसके दुख का कारण पूछे बगैर किसी की पीड़ा को अखबार में कैसे लिखा जा सकता है? टीवी पर कैसे दिखाया जा सकता है ??? मीडिया को लेकर अजीब जुमले हैं लोगों के, मसलन मीडिया वाले ये मत पूछो, वो मत पूछो। देखो ! ये पूछ लिया, देखो ! वो पूछ लिया...! ये मीडिया वाले मदद कम ,तमाशा ज्यादा करते है!!!
मीडिया ही क्यों किसी भी सिस्टम को कोसना आसान है लेकिन अंदर की हकीकत तो समझ लिजिए. किसी भी स्टोरी को तैयार करने के लिए बुनियादी बांतें होती है,माहौल में ढ़लने के लिए कुछ सवाल होते ही हैं। जैसे आपके घर में कोई सही सलामत इंसान खुद अपने पैरों पर चल कर आया हो और आप पूछ बैठते हैं -'' How r you !!! ..'' या इंसान के घर के भीतर आने और आपके दरवाजा बंद करने के बाद आप पूछें कि -'' क्योे भाई साहब ! आप अकेले ही आए हैं ???..'', किसी को चोट लगे और वो आंसू बहा रहा हो तो बरबस ही मुंह से निकल पडता है कि क्या वाकई बहुत दर्द हो रहा है....!!! ... जैसे आप, वैसे आपका मीडिया...!!!
कुछ सवाल जबाव के लिए नहीं बल्कि कम्फर्ट लेवल बनाने के लिए किए जाते है। इसका मतलब ये नहीं है कि पूछने वाले बेवकूफ है. माहौल संभालने के लिए अगर कोई बचकाना सवाल कर भी लिया तो क्या गलत हो गया ? अरे भाई ! भले ही लोगों से उलटे सीधे सवाल पूछतें हैं लेकिन इसके जरिए यही तो दर्शाते हैं ना कि फलाना व्यवस्था कैसी चल रही है ? वो सिस्टम कैसा चल रहा है ??? मीडिया को कोसने वाले समाज से ये सवाल जरूर पूछना चाहता हूं कि सवालों से इतना परहेज क्यों है आप लोगों को ...???
ख़ैर, बात नेपाल में इंडियन मीडिया के विरोध की है. मुझे लगता है कि नेपाल में इंडियन मीडिया की रिपोर्टिंग और उसके तौर-तरीको पर जानबूझ कर मुद्दा बनाया जा रहा है। मैंने इंडियन मीडिया की कई ऐसी रिपोर्ट भी देखी हैं जो नेपाल के लोगों की जीजीविषा बता रही थी, वहां के लोगों की जिंदगी के संघर्ष को जुबान दे रही थी। मैं उन्हीं का जिक्र कर रहा हूं जिनकी रिपोर्ट मैं देख पाया हूं। सीनियर जर्नलिस्ट दिबांग की रिपोर्ट मैंने देखी जिसमें स्टोरी थी कि एक ऐसी गर्भवती महिला भूकंप के वक्त बच गई और अब एक बच्चे को जन्म दे चुकी है। भूकंप में विनाश लीला के बीच कुदरत ने एक सृजन भी किया। बताईए क्या गलत हैं इस तरह की रिपोर्टिंग में ??? कुदरत के कहर का जिक्र करते हुए कुदरत के करिश्मों और नेपाल के लोगों की जीजीविषा को बताने पर क्या किसी समझदार आदमी से उम्मीद कर सकते हैं कि वो नेपाल में भारतीय मीडिया से कहे कि -#GoBackIndianMedia ???
भारतीय मीडिया, नेपाल में पल-पल के घटनाक्रम की गवाह बन रही है। भारत ही नहीं बाकी देशों के रेस्क्यू ऑपरेशन का जिक्र हो रहा है। सीनियर जर्नलिस्ट ह्यदेश जोशी काठमांडू से बता रहे हैं कि चायना सरकार ने ''स्नैक आई'' इक्विप्टमेंट भेजा है जिससे मलबे में दबे लोगों को कैमेरे के जरिए तलाशा जा सकता है। क्या ये बेवजह की रिपोर्टिंग हैं ??? काठमांडू में खुले मैदान में पड़े लोगों के बीच अगर कोई फसाद हो रहा हो तो मौक़े पर खड़ा रिपोर्टर क्या करें ??? जब अव्यवस्थाओं की कहानी कहने के लिए उसे विजुअल्स मिल रहे हैं और ऐसे विजुअल्स, जो खुद कहानी बयां कर दें तो क्या गलत हैं इसमें ??? क्या मीडिया का ये बताना गलत हैं कि नेपाल में त्रासदी के वक्त भी कुछ लोग लूटपाट में लगे हुए हैं, वहां की आर्मी के इंतजाम और सरकार इन्हें रोकने में विफल हो रही है। लोग कह रहे हैं कि भारतीय मीडिया का अंदाज ऐसा है कि नेपाल की कवरेज नहीं बल्कि किसी टीवी सीरियल की शूटिंग की जा रही है।

टीवी देखते हुए जो कार्यक्रम,सीरीयल आपको रिमोट कंट्रोल की जद में लगती है। उसे बनाने के लिए कितने लोगों का इन्वॉल्वमेंट होता है ? मीडिया पर इस तरह की टिप्पणी करने वाले लोगों में बहुत कम लोगों को इसका अंदाजा होगा...! यकीन जानिए, कि टीवी सीरियल बनाना भी कोई आसान या कम जिम्मेदारी भरा काम नहीं है। ये तो फिर त्रासदी में रिपोर्टिंग का मामला है। फील्ड से जानकारियां जुटाने के लिए सो कॉल्ड रिस्पोंसिबल ऑफिशियल्स और लीडर्स, रिपोर्टर्स और कैमेरापर्सन्स को कितना आगे-पीछे भगाते हैं, ये मीडिया वाले बखूबी जानते हैं। कहने तो सिर्फ ये ही कह कर काम चलाया जा सकता है कि भूकंप के बाद नेपाल बर्बाद हो गया। तो क्या सिर्फ ये कहने भर से काम चल जाएगा ? फिर मत कहिएगा कि मीडिया ज्यादा विश्वसनीय होना चाहिए, मौक़े पर खडा होना चाहिए । क्योॆकि विश्वसनीयता के लिए जिस तरह के विजुअल्स और बाइट्स चाहिए उसे तो आपने नैतिक मूल्यों की बेरिकेटिंग में रख दिया है। आप खुद सोंचिए मशीनी कैमेरे को इंसान की आँखों की तरह इस्तेमाल करवाना क्या आसान काम है ???
बर्बादी की दास्तान को दिखाने के लिए आपको बताना होगा कि उसका अतीत क्या था और अब वर्तमान क्या है। मीडिया इन हालातों को दिखाने के लिए अपने तरीके से शूटिंग भी ना करे ??? ऐसा भी क्या गलत कर दिया नेपाल में इंडियन मीडिया ने !!! नेपाल की त्रासदी के वक्त ये पहला मौक़ा है जब भारतीय मीडिया ने इसे गैर मूल्क में अपनी प्रभावी दस्तक दी है। फिर भी गो बैक इंडियन मीडिया का नारा बुलंद हो रहा है ... मुझे लगता है कि वजह कुछ और है।
दरअसल, सार्क देशों में ये पहला मौक़ा है जब किसी देश में हुई त्रासदी कवर करने भारतीय पत्रकार इतनी बड़ी तादाद में पहुंचे हो। त्रासदी ही नहीं, हर मौक़े पर भारतीय मीडिया देश के बाहर कदम रखकर अंतर्राष्ट्रीय माहौल से जूड़ रहा है। लंदन, न्यूयॉर्क,आस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड,कनाडा, जाने कहां-कहां खुद पहुंच रही है भारतीय पत्रकारों की टीम। एक दौर था जब इंडियन मीडिया बीबीसी, रायटर,सीएनएन, रशियन एजेंसी तास पर निर्भर थी। वो दौर तो मैंने ही देखा हैं जिसमें देश के अखबार या रेडियो चाहे जितना लिख दें, चाहे जितना बोलें लेकिन खबर पर मुहर बीबीसी रेडियों की न्यूज़ पर चलने के बाद ही लगती थी।
आज नेपाल त्रासदी की रिपोर्टिंग में भारतीय मीडिया सबसे अव्वल है। भारतीय पत्रकारों की समझ,संसाधन और प्रजेन्टेशन को अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आँखे चौड़ी कर देख रहा है। बात सिर्फ नेपाल की नहीं बल्कि कई देशों में त्रासदी से लेकर क्रिकेट जैसे मसलों पर इंडियन मीडिया नेपाली,पाकिस्तानी,श्रीलंकन मीडिया के साथ मंच साझा करने से नहीं चूक रहा। बुलेट ट्रेन का नजारा आपको दिखाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यूज एजेंसियों के भरोसे रहने के बजाए इंडियन मीडिया खुद चीन और जापान में जाकर बुलेट ट्रेन में सफर कर रहा है। मीडिया में विदेशी निवेश ने भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया की उड़ान को नई ऊंचाइयां दे दी है। भले ही आप इसे मीडिया में विदेशी निवेश कह दीजिए या फिर देश के विकास की रफ्तार का असर,
लेकिन अब भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया, देश की सीमाओं को लांघने के लिए बेताब नजर आता है। सत्ता से कितना पास और कितना दूर है हमारा मीडिया, ये अलग बहस का विषय हो सकता है लेकिन पूरे दक्षिण एशिया में इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया की अलग पहचान बन रही है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में एक ताकतवर मीडिया के रूप में स्थापित हो रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की मीडिया का नया चेहरा दुनिया देश रही है। भारतीय मीडिया की साख का असर हैं कि नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्टिंग देखने और पढ़ने के तलबगारों की मांग न के बराबर रह गई है।
हिन्दी हो या इंग्लिश, सूचनाओं की हर खुराक आपको देश की मीडिया मुहैया करवा रही हैं। ऐसे मौके पर मान लिजिए कि ट्विटर हैंडल पर कोई टिप्पणी चली, तो क्या इसे भारतीय मीडिया के मजाक का जरिया बना देंगे आप ...??? अंतर्राष्ट्रीय मीडिया दिवस के ऐन मौक़े पर बीबीसी ने ट्विटर हैंडल #GoBackIndianMedia की विस्तार से बीबीसी ने जिस तरह से अपनी बेवसाइट पर खबर दी और इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया की भूमिका की चर्चा की वो वाकई चौंकाने वाला है। क्योंकि जिस तरह से भारतीय मीडिया ने पाकिस्तान की ओर से नेपाल में राहत सामग्री में बीफ भेजे जाने का मुद्दा उठाया, राहत के कामों को दर्शाया, पूरे नेपाल के चप्पे-चप्पे की खबर दी वो खबरों के लिहाज से तो वाकई तारीफ-ए-काबिल है। ये बात सही है कि भारतीय मीडिया अभी अतिरेक से भरा हुआ है। लेकिन ये भी सच हैं कि अतिरेक और अतिउत्साह में ही सही लेकिन भारत का पत्रकार वहां भी पहुंचा जहां अब तक नेपाली सरकार की राहत नहीं पहुची थी।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया नेपाल में भूकंप त्रासदी को उस इन्टेन्सिटी से उठा तक नहीं पाया। हालाँकि इसके पीछे हमारी साँझा संस्कृति और भाषा भी एक बड़ी वजह रही। हमें टीवी पर देख कर लग ही नहीं रहा हैं कि ये मामला किसी गैर मूल्क का है, हम इस त्रासदी से ऐसे ही जुड़ गए हैं मानों भारत के किसी राज्य में ये त्रासदी हुई हो। क्या इसका क्रेडिट आप इंडियन मीडिया को नहीं देंगे ...??? हमारे टीवी चैनल्स ने हिन्दी और इंग्लिश दोनों तरह की भाषाओं के भारतीय दर्शकों की मांग पूरी की है। भारतीय मीडिया की सक्रियता से वाकई नेपाल सरकार पर दबाव बढ़ा होगा, क्योंकि इस दबाव का असर भारत सरकार पर भी नजर आ रहा है। त्रासदी के वक्त नेपाल पहुंचने में भारतीय मीडिया, भारतीय राहतकर्मियों से कतई पीछे नहीं रहा। ऐसे में सवाल ये उठता हैं कि फिर नेपाल के किन लोगों के हवाले से #GoBackIndianMedia अभियान चलाया जा रहा है ?

मेरा मानना है कि जिस भूकंप ने अस्सी फीसदी काठमांडू को तबाह कर दिया हो, वहां लोग वाकई ट्विटर हैंडल के जरिए इस तरह का कोई कैंपन चला रहे हैं और इसे नेपाली जनता का भारी समर्थन मिल रहा है, तो मुझे विश्वास कम है।
चलिए फिर भी ऐसा हो रहा है तो नेपाल के कितने लोग इससे जुडे होगें ??? ...आज के हालात में बिजली तक तो ठीक से मयस्सर नहीं है नेपाल में . तो इंटरनेट कहां से रहा है , वो भी इतना कि भारतीय मीडिया विरोधी कैम्पेन सोशियल मीडिया पर वायरल हो जाए। जाहिर हैं नेपाल से ज्यादा ये हैंडल पाकिस्तान,चीन या बाकी देशों के काम आ रहा है। मीडिया की संवेदनशीलता हमेशा एक मुद्दा रहा है, हो सकता है कि इस बार भी रहा हो लेकिन आखिर अचानक नेपालियों के मन में इतनी नफरत क्यों ?
अगर वाकई इतनी नफरत हैं तो फिर सिर्फ मीडिया पर ही निशाना क्यों ??? दरअसल, नेपाल काफी अर्से से राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चों पर अधरझूल में रहता आया है। भारत से पुराने संबंधों के बीच नेपाल में ऐसे नेताओं की जमात भी कम नहीं जिन्हें चीन का साथ ज्यादा सुहाना लगता है। वहां भारत के खिलाफ ये प्रचार हैं कि हिन्दुस्तान, नेपाल की अस्मिता को कब्जे में ले लेगा। भारत का स्वाभाविक साथी होना वहां के नए नेताओं को इसीलिेए भी पसन्द नहीं क्योंकि वहां के नए नेताओं को नया मुद्दा चाहिए। पर्यटकों की बड़ी आमद के फेर में नेपालियों के कई देशों से रिश्ते बन रहे हैं और वो नहीं चाहते कि नेपाल अपनी जरूरतों के लिए सिर्फ भारत तक ही सीमित रहे। इसी कड़ी में चीन और सार्क के कई देश भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
मुझे लगता है कि इस अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में इंडियन मीडिया सॉफ्ट टारगेट बन गया, ये शुरुआत भर हैं अभी मीडिया तो कल भारत सरकार की भी बारी आएगी। हो सकता है कि नेपाल अपने अंदरूनी दबाव के चलते भारत को मदद करने से ही इंकार भी कर दे। लेकिन हमें इसका अभी अहसास नहीं हो रहा। अभी तो हम लुत्फ ले रहे हैं कि देखों किस तरह से इन टीवी चैनल वालों की फजीहत हो रही है।
हम तो सोशियल मीडिया में चल रहे किसी भी कैंपन का हिस्सा बन सकते हैं, चाहे वो भारतीय मीडिया के खिलाफ ही क्यों न हो.
हमारे देश के लोग भी #GoBackIndianMedia का हिस्सा बनकर दुनिया के सामने अपनी मीडिया को बेवकूफ साबित करते हुए माफी मांग रहे है, खुद अपने घर के चिराग को कोस रहे हैं। ये बात सही हैं कि आप इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया के तौर- तरीकों को सौ फीसदी सही होने का सर्टिफिकेट नहीं दे सकते । भारत की मीडिया को किसी भी घटना की कवरेज दिखाने के लिेए एक दायरा तय करना होगा। आप दिन भर टीवी पर एक घटनाक्रम दिखाकर बाकी राज्यों के साथ अन्याय नहीं कर सकते। लेकिन इसके पीछे टीआरपी का खुला खेल है। जी हां, ये सच हैं कि हम टीआरपी के ऐसे खेल के खिलाड़ी हैं, जिस खेल के रूल्स और रेग्यूलेशन हमें ही ठीक से नहीं मालूम। इसीलिए जिस माहौल में ज्यादा टीआरपी मिलती है, उसी माहौल में चाहे-अनचाहे ढ़लना पड़ता है सभी को। अब ये व्यवस्था ऐसी क्यों है ये बहस का अलग विषय है। हमारी मीडिया कितनी संवेदनशील है और कितनी नहीं, और क्यों नहीं बन पा रही है, इसके पीछे यहीं वजह है। ये कहना आसान है कि टीवी चैनल टीआरपी का खेल खेलते हैं। लेकिन कौन खेलना चाहता हैं ये खेल ? क्या मीडिया खुद इच्छुक है या फिर बाजार मजबूर कर रहा है। आज की तारीख मे टीआरपी हासिल करना चैनल्स के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी आपके लिए सांस लेना। अगली बार टीआरपी पर विस्तार से बात करेंगे लेकिन अभी इलेक्ट्रौनिक मीडिया को घेर रहे लोगों से इतना कहना चाहता हूं कि ज़रा रूकिए साहब !!! किसी भी व्यवस्था पर इतनी तोहमतें मत लगाईए कि हर बात एक ढोंग नजर आए,इसमे आखिरकार नुकसान तो हमारी डेमोक्रेसी का ही है।
मैं, ये नहीं कहता कि इंडियन मीडिया बेदाग़ है। लेकिन हमारे सिस्टम में दूध का धुला हैं कौन ??? कम से कम मीडिया में जो गलत हैं या सही है वो आप समझ तो सकते हैं, आप महसूस तो कर सकते हैं। वरना तो देश की राजनीति कई ऐसे घोटालों से भरी पड़ी है जिनकी सच्चाई सामने आने में कितना वक्त लग जाए। मीडिया तो अपने एक कदम पर ही आपकी समीक्षा और पड़ताल का सामना करता है, उसे अगर झूठ भी दिखाना है तो सोंचिए आपके लिए सच के कितने मुलम्मे तैयार करने होंगे मीडिया को ???
आपको मालूम हैं कि इंडियन इलेक्ट्रोनिक मीडिया 90 के दशक में तैयार हुआ है और अभी 2015 चल रहा हैं यानि हमारी इलेक्ट्रोनिक मीडिया की उम्र 25 साल से ज्यादा नहीं। अब खुद आप अपने घर में 25 साल के नौजवान को देख लिजिए। वो जो कर रहा है, करना चाहता है ... वहीं है इलेक्ट्रोनिक मीडिया का चरित्र।आप आप अपने घर के नौजवान को उत्साही कह सकते हैं, जोशीला कह सकते हैं, रिस्क टेकर कह सकते हैं लेकिन गैरजिम्मेदार नहीं कह सकते क्योंकि उसे गैरजिम्मेदार कहने के लिेए आपको उसके और उम्रदराज़ होने का इंतजार करना होगा। देखना होगा कि वो जिंदगी के इम्तिहान से कैसे गुजरेगा ...। अगली बार टीआरपी के खेल पर खुल कर होगी बात...
...लेकिन अभी चलते-चलते इलेक्ट्रोनिक मीडिया को कोसने वालों के लिए गालिब का ये शेर.
हर बात पर कहते हो कि तू क्या है
तुम ही बताओ ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है ??
- विशाल सूर्यकांत शर्मा
- विशाल सूर्यकांत शर्मा
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सारगर्भित विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंपाकिस्तान और चीन को यह पच नहीं रहा है कि नेपाल में भारत सरकार के प्रति लोग जुङाव महसूस कर रहे हैं। सभी को पता है पाकिस्तान सरपरस्त आतंकियों के लिए नेपाल हमेशा से सेल्टर के रूप रहा है और चीन के अपने स्वार्थ हैं। भारतीय मीडिया ने भी भरपूर ताकत से पूरे विश्व और खासकर नेपालवासियों को बताया कि नेपाल का सबसे बङा मित्र कौन है। ऐसे में गो बैक इंडिया जैसे कैंपेन की आशंका भारतीय विदेश मंत्रालय भी जता चुका था।
शुक्रिया कुणाल वर्मा जी
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