जब भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को भी ये मालूम नहीं था कि सुषमा स्वराज और वसुन्धरा राजे के साथ क्या सलूक किया जाएगा तो आम लोगों को कैसे समझ में आता। पूरे घटनाक्रम को समझिए मेरे नज़रिए से...। मुझे लगता है कि पार्टी का सुषमा स्वराज के साथ खड़ा होना और वसुन्धरा राजे का नहीं जाने का घटनाक्रम भारतीय जनता पार्टी में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के हनीमून पीरियड की विदाई की और इशारा है। ज़रा पीछे चलें इस पूरे घटनाक्रम से अलग...मुरली मनोहर जोशी,जिन्हें वाराणसी से हटाकर खुद नरेन्द्र मोदी ने चुनाव लड़ा।नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की बेलगाम होती जोड़ी पर नकेल डालने का पहला वार उन्होंने ही किया।
जोशी ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की खुली मुखालफत की। उमा भारती को कहना पड़ा,उनसे बात की जाएगी, सलाह ली जाएगी।नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को दिल्ली चुनाव के बाद से ही घेरने का मौका तलाशा जा रहा था। दिल्ली के बाद अब पंजाब और बिहार में चुनाव है। आडवाणी खेमे को एक मौक़े की तलाश थी। जोशी के नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर सवाल उठाने को नरेन्द्र मोदी गुट ने पहला वार मान कर पलटवार कर दिया। सुषमा स्वराज को घेरने के लिए मोदी खेमे से ललित मोदी को लेकर यूके को लिखे गए लेटर लीक हुए। सुषमा स्वराज बूरी तरह घिर गई। उधर ,ललित मोदी ने उन्हें बचाने के लिए दस्तावेजों का पुलिंदा जारी किया। यहां ललित मोदी ने एक तीर से दो शिकार किया। जिसमें वकील के जरिए वो दसतावेज उजागर किए जिसमे राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे भी उलझ सकती थी। इस डोक्युमेंट में यूके सरकार के लोगों को कहा कि वे ललित मोदी के लिए गवाही दे रही है लेकिन भारतीय एजेंसियों को इसकी जानकारी ना ले। स्वराज और राजे घिर गई। पार्टी की तरह ही आरएसएस खेमा भी नरेन्द्र मोदी समर्थक और विरोधी तो नहीं लेकिन हां, ऐसे लोग जो मोदी सरकार पर आरएसएस का कंट्रोल खत्म नहीं होने देना चाहते, ऐसे लोगों के बीच साफ बंट गया।
जोशी ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की खुली मुखालफत की। उमा भारती को कहना पड़ा,उनसे बात की जाएगी, सलाह ली जाएगी।नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को दिल्ली चुनाव के बाद से ही घेरने का मौका तलाशा जा रहा था। दिल्ली के बाद अब पंजाब और बिहार में चुनाव है। आडवाणी खेमे को एक मौक़े की तलाश थी। जोशी के नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर सवाल उठाने को नरेन्द्र मोदी गुट ने पहला वार मान कर पलटवार कर दिया। सुषमा स्वराज को घेरने के लिए मोदी खेमे से ललित मोदी को लेकर यूके को लिखे गए लेटर लीक हुए। सुषमा स्वराज बूरी तरह घिर गई। उधर ,ललित मोदी ने उन्हें बचाने के लिए दस्तावेजों का पुलिंदा जारी किया। यहां ललित मोदी ने एक तीर से दो शिकार किया। जिसमें वकील के जरिए वो दसतावेज उजागर किए जिसमे राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे भी उलझ सकती थी। इस डोक्युमेंट में यूके सरकार के लोगों को कहा कि वे ललित मोदी के लिए गवाही दे रही है लेकिन भारतीय एजेंसियों को इसकी जानकारी ना ले। स्वराज और राजे घिर गई। पार्टी की तरह ही आरएसएस खेमा भी नरेन्द्र मोदी समर्थक और विरोधी तो नहीं लेकिन हां, ऐसे लोग जो मोदी सरकार पर आरएसएस का कंट्रोल खत्म नहीं होने देना चाहते, ऐसे लोगों के बीच साफ बंट गया।
उस खेमे में संजय जोशी और राम माधव जैसे लोग हैं, जो कि फाइनेंसर लॉबी के साथ आरएसएस में अच्छा रसूख रखते हैं। दूसरी और नरेन्द्र मोदी समर्थक आरएसएस गुट में ओम माथुर, मनोहर खट्टर व अन्य लोग शामिल है।
- सीधा मामला ये हो गया कि आडवाणी और उनके समर्थक नेता और आरएसएस लॉबी
- और दूसरा नरेन्द्र मोदी उनके समर्थक और उनकी आरएसएस लॉबी
- और दूसरा नरेन्द्र मोदी उनके समर्थक और उनकी आरएसएस लॉबी
सुषमा स्वराज और फिर वसुन्धरा राजे के फंसने के बाद आडवाणी कैंप को लगा कि अपने लोगों को नहीं बचाया तो फिर मोदी-शाह गुट का एकछत्र राज हो जाएगा। लिहाज़ा आडवाणी ने इमरजेंसी के हालात वाला बयान दिया। ये ऐलान था उन सभी के लिए जो नरेन्द्र मोदी से खुश तो नहीं थे लेकिन कोई मोदी को चुनौती देने वाले फेस की तलाश में जरूर जुटे थे। आडवाणी ने ऐसे लोगों की आवाज को जुबां दे दी। सुषमा स्वराज को हटाने की मांग करने वाला विपक्ष इससे आगे मोदी के इस्तीफे की मांग करता, इसीलिए मोदी गुट पहले से तैयार था कि सुषमा स्वराज का इस्तीफा नहीं लेना है लेकिन पूरी तरह एक्सपोज़ कर बदनामी करने की मंशा से नरेन्द्र मोदी ने बचाव नहीं किया। अपनी विदेश मंत्री को विवादों में छो़डकर मोदी खुद बाहर से आए राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत करने में व्यस्त होते दिखे।
उधर, आडवाणी ने इमरजेंसी के बयान से बने दबाव को और आगे बढाते हुए केजरीवाल को मुलाकात का टाइम देकर दूसरा दांव खेल दिया। इस दांव के आगे मोदी-शाह गुट पीछे हट गया। क्योंकि केजरीवाल, आडवाणी के इस बयान की बिसात पर अपनी राजनीति जोड़ चुके थे। अमित शाह ने रिक्वेस्ट के बाद आडवाणी ने ये मुलाक़ात रद्द की । इस शर्त के साथ की पार्टी दोनों के लिए बचाव में आगे आयगी। नतीजा ये कि भाजपा के प्रवक्ता जो पिछले तीन दिनों से खामोश बैठे थे वो बैरक से बाहर आए। स्वराज और राजे दोनों का जमकर बचाव करने लग गए। ये शुरुआत हैं क्योंकि दांव-पेंच और चलेंगे लेकिन इस बीच भाग्यशाली वसुन्धरा राजे रही हैं क्योंकि उन पर आया अब तक का सबसे बड़ा खतरा और दबाव अब टल गया है। दरअसल, वसुन्धरा राजे इस मामले में फंसी ललित मोदी की शरारत की वजह से थी और बची हैं तो आडवाणी कैंप के स्टेंड ले लिए जाने से।
स्थितियों में तालमेल देखिए कि कौन किसके सामने झुके, इस लड़ाई को जोधपुर में आए सुब्रह्मय्म स्वामी ने और ये कह कर उजागर कर दिया कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाएं जिसमें सभी खुल कर अपनी बात रखें, अमित शाह आडवाणी से सलाह लें। क्योंकि स्वराज को बचाने के लिए वसुन्धरा राजे का भी इस्तीफा रोकना था, इसीलिए सुब्रहम्यम स्वामी ने उनकी तुलना झांसी की रानी से कर आडवाणी कैंप में उनकी मौजूदगी के संकेत दे दिए।
स्थितियों में तालमेल देखिए कि कौन किसके सामने झुके, इस लड़ाई को जोधपुर में आए सुब्रह्मय्म स्वामी ने और ये कह कर उजागर कर दिया कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाएं जिसमें सभी खुल कर अपनी बात रखें, अमित शाह आडवाणी से सलाह लें। क्योंकि स्वराज को बचाने के लिए वसुन्धरा राजे का भी इस्तीफा रोकना था, इसीलिए सुब्रहम्यम स्वामी ने उनकी तुलना झांसी की रानी से कर आडवाणी कैंप में उनकी मौजूदगी के संकेत दे दिए।
आडवाणी के प्रशय के बाद वसुन्धरा राजे ने भी बगावती तेवरों की झलक दिखाते हुए दो-तीन विधायकों को मीडिया में बाइट देने के लिए आगे किया। ये महसूस करवाने के लिए की वसुन्धरा को हटाया तो पार्टी टूट जाएगी। दिल्ली की हार और सामने खडे बिहार की वजह से मोदी-शाह गुट इसके लिए तैयार नहीं था। दोनों गुटों में संघर्ष विराम की बिसात बिछ गई। सुषमा स्वराज के साथ ही वसुन्धरा राजे का बचाव करने के लिए पार्टी को आगे आना पड़ा। वसुन्धरा राजे को बचाने के कारण तलाशे गए। जिसमें देखा गया कि वसुन्धरा राजे के खिलाफ दस्तावेज में ललित मोदी के साईन तो हैं लेकिन वसुन्धरा राजे के नहीं। इस पहलू को तीन दिनों के मंथन के बाद वसुन्धरा राजे के लिेए ढ़ाल बनाया गया। सुषमा स्वराज के लिेए मानवीय संवेदनाओं की ढाल और वसुन्धरा राजे के लिए सबूत का अभाव। उनके पुत्र दुष्यंत सिंह के लिए विशुद्ध आर्थिक लेन-देन का आधार बनाया गया।
इधर, भाजपा प्रवक्ताओं के बयान हुए तो आडवाणी ने भी इमरजेंसी वाले बयान पर अपनी सफाई देते हुए तीर का निशाना कांग्रेस की ओर मोड़ दिया। यानि साफ तौर पर दोनों खेमों में अब युद्ध विराम हो गया। लेकिन भाजपा में ये अभी संघर्ष विराम है लेकिन बिहार के नतीजों के बाद स्थितियां बदेंलगी। क्योंकि राजनीति को करीब से जानने वाले साफ देख पा रहे हैं कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी की राह आसान नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो आडवाणी कैप फिर मुखर होगा । फिलहाल, आडवाणी और मोदी कैंप में शह और मात के खेल के बीच वसुन्धरा राजे को हटाने या ना हटाने का मुद्दा, शतरंज के मोहरे की तरह आगे-पीछे चल रहा है। जाहिर है कि उपरी स्तर पर जिस तरह के हालात बन रहे हैं। फ़ैसला आसान नहीं होगा।
इधर, भाजपा प्रवक्ताओं के बयान हुए तो आडवाणी ने भी इमरजेंसी वाले बयान पर अपनी सफाई देते हुए तीर का निशाना कांग्रेस की ओर मोड़ दिया। यानि साफ तौर पर दोनों खेमों में अब युद्ध विराम हो गया। लेकिन भाजपा में ये अभी संघर्ष विराम है लेकिन बिहार के नतीजों के बाद स्थितियां बदेंलगी। क्योंकि राजनीति को करीब से जानने वाले साफ देख पा रहे हैं कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी की राह आसान नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो आडवाणी कैप फिर मुखर होगा । फिलहाल, आडवाणी और मोदी कैंप में शह और मात के खेल के बीच वसुन्धरा राजे को हटाने या ना हटाने का मुद्दा, शतरंज के मोहरे की तरह आगे-पीछे चल रहा है। जाहिर है कि उपरी स्तर पर जिस तरह के हालात बन रहे हैं। फ़ैसला आसान नहीं होगा।