अति सर्वत्र वर्जयेत..!
- विशाल सूर्यकांतराजस्थान में जो कुछ घटनाक्रम हो रहा है वो 'अति' बनता जा रहा है । सरकार या विरोधी गुट में अतिसमर्थन,अतिविरोध, अतिवादी बयान के बीच सब कुछ राजनीतिक अतिरेक की ओर चला जा रहा है। सबसे पहले सरकार के अतिरेक को समझिए। सरकार को उम्मीद थी कि पायलट गुट और कांग्रेस की जंग में भले ही बीजेपी शामिल हो जाए लेकिन राजभवन कतई शामिल नहीं होगा। दरअसल, राजभवन में राज्यपाल बनकर आए कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री गहलोत की बीच अच्छी बांडिंग भी नजर आ रही थी। ऐसा लगा कि राजनीति से उपर रिश्ते हैं तो राजस्थान में कभी टकराव के हालात नहीं बनेंगे। मगर अब राजभवन और मुख्यमंत्री निवास के बीच तल्ख चिठ्ठियों का दौर चल पड़ा है और बीजेपी ने भी इसे मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। राजभवन के जनता द्वारा घेराव करने और अपनी कोई जिम्मेदारी न होने के बयान पर बीजेपी के साथ-साथ राजभवन में खासा आक्रामक हो चला है। घेराव को लेकर सख्त बयान दे चुके मुख्यमंत्री गहलोत इन दिनों अलग मूड में है।
दरअसल, केबिनेट के फैसले के बाद भी कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि राजभवन जानबूझ कर विशेष सत्र बुलाने में तकनीकी पेंच फंसा रहा है। इधर, राजभवन भी सत्र आहूत करने में फिलहाल ज्यादा जल्दबाजी नहीं दिखा रहा है। इस बीच राजभवन में 27 साल बाद, फिर घटनाक्रम का दोहराव हुआ। तब मुख्यमंत्री बनने के लिए भेरोंसिंह शेखावत का धरना तो अब सरकार का बचाव करने विशेष सत्र की मांग पर मुख्यमंत्री गहलोत, बहुमत के साथ धरने पर दे आए। उसी राजभवन में तमाम विधायकों का धरना था, जहां कई विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। ये बिरला मौका है जब सरकार खुद आगे चलकर अपना विश्वास मत साबित करना चाह रही है और विपक्ष की इसमें तनिक भी दिलचस्पी नहीं है। दरअसल, पायलट और बीजेपी दोनों को, सरकार का फ्लोर पर आना सूट नहीं करता। क्योंकि विशेष सत्र में किसी मुद्दे पर चर्चा में संकल्प प्रस्ताव पारित करवा कर गहलोत सरकार पायलट कैंप के विधायकों को जयपुर लौटने न सिर्फ मजबूर कर देगी बल्कि किसी न किसी संकल्प प्रस्ताव को लाकर पार्टी व्हिप लागू कर देगी। ऐसी सूरत में विधायक न आए या विपरीत गए तो कार्रवाई होगी और सरकार का साथ दिया तो अलग मैसेज जाएगा। इसका फायदा, सरकार को यह भी मिलेगा कि पूरे छह महीने की 'पॉलिटिकल इम्यूनिटी' सरकार को मिल जाएगी। इसी रणनीति पर अलग-अलग लोग काम कर रहे हैं। मगर केबिनेट नोट के बावजूद विधानसभा सत्र नहीं बुलाया गया, अब तकनीकी रूप से स्पष्ट कर दूसरा नोट भेजा गया है। 21 दिन तक राजभवन अगर सत्र को टालने का कोई तकनीकी रास्ता निकाल ले तो फिर सरकार को होटल से बाहर आना पड़ेगा, विधायकों के फ्री होते ही एक जोर और लगाने की तैयारी हो चुकी है। 21 दिन मिल जाएं तो नंबर गेम से पासा पलटने का खुला खेल हो सकता है। इसीलिए सरकार 'आज और इस वक्त' की नीति अपनाए हुए हैं। उधर, राजभवन का तकनीकी परीक्षण अभी खत्म नहीं हुआ है। राजभवन और सरकार के बीच बनी ये स्थितियां 'अविश्वास का अतिरेक नहीं तो क्या है ?
राजस्थान की राजनीति में चल रहे इस धारावाहिक में एक किरदार, केन्द्र सरकार का भी है। प्रदेश में भी वो सब कुछ हो रहा है, जो बीते समय में बाकी राज्यों में हुआ है। यहां केन्द्र सरकार की एजेंसियां जिस रूप में अति सक्रिय हुई है्ं, उसके पीछे संवैधानिक सवाल भले ही न खड़े किए जा सकें लेकिन नैतिकता और राजनीतिक द्वेष की कार्रवाई की जनचर्चाएं कौन रोक सकता है। क्यों और किस-किस पर छापे मारे जा रहे हैं। आम दिन होते तो फिर भी गले उतारा जा सकता था। इस वक्त के घटनाक्रम केन्द्र और राज्य सरकार के बीच की तल्खी के अतिरेक को बता रहे हैं।
दरअसल, पायलट कैंप में बेचैनी है कि अगर विधानसभा सत्र बुला लिया जाएगा तो पार्टी का व्हिप लागू होगा। विधानसभा में आए तो मुसीबत, न आए तो मुसीबत। सरकार के कोई ऐसा प्रस्ताव जिसमें व्हिप हो, उसका समर्थन किया तो अब तक किया गया विरोध बेकार चला जाएगा, समर्थन न किया तो सदस्यता चली जाएगी। पायलट कैंप के सूत्र बता रहे हैं कि विधायकी छोड़ने में भी कोई संकट नहीं लेकिन ऐसा हो भी जाए और सरकार का बहुमत कायम रहे तो ऐसा 'बलिदान' किस काम का ? ऐसा तो तब हो जब संख्याबल में ये स्थितियां बन जाएं कि हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे...
अब बात बीजेपी के अतिरेक की...