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शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

#RajasthanPoliticalCrisis होगा सरकार का भविष्य ? क्यों जरूरी विधानसभा सत्र, #rajasthan की राजनीति में हो रहे घटनाक्रम पर जनता के मन की बात..

अति सर्वत्र वर्जयेत..!



- विशाल सूर्यकांत

राजस्थान में जो कुछ घटनाक्रम हो रहा है वो 'अति' बनता जा रहा है । सरकार या विरोधी गुट में अतिसमर्थन,अतिविरोध, अतिवादी बयान के बीच सब कुछ राजनीतिक अतिरेक की ओर चला जा रहा है। सबसे पहले सरकार के अतिरेक को समझिए।  सरकार को उम्मीद थी कि पायलट गुट और कांग्रेस की जंग में भले ही बीजेपी शामिल हो जाए लेकिन राजभवन कतई शामिल नहीं होगा। दरअसल, राजभवन में राज्यपाल बनकर आए कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री गहलोत की बीच अच्छी बांडिंग भी नजर आ रही थी। ऐसा लगा कि राजनीति से उपर रिश्ते हैं तो राजस्थान में कभी टकराव के हालात नहीं बनेंगे।  मगर अब राजभवन और मुख्यमंत्री निवास के बीच तल्ख चिठ्ठियों का दौर चल पड़ा है और बीजेपी ने भी इसे मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। राजभवन के जनता द्वारा घेराव करने और अपनी कोई जिम्मेदारी न होने के बयान पर बीजेपी के साथ-साथ राजभवन में खासा आक्रामक हो चला है। घेराव को लेकर सख्त बयान दे चुके मुख्यमंत्री गहलोत इन दिनों अलग मूड में है।
 
दरअसल, केबिनेट के फैसले के बाद भी कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि राजभवन जानबूझ कर विशेष सत्र बुलाने में तकनीकी पेंच फंसा रहा है। इधर, राजभवन भी सत्र आहूत करने में फिलहाल ज्यादा जल्दबाजी नहीं दिखा रहा है। इस बीच राजभवन में 27 साल बाद, फिर घटनाक्रम का दोहराव हुआ। तब मुख्यमंत्री बनने के लिए भेरोंसिंह शेखावत का धरना तो अब सरकार का बचाव करने विशेष सत्र  की मांग पर मुख्यमंत्री गहलोत, बहुमत के साथ धरने पर दे आए। उसी राजभवन में तमाम विधायकों का धरना था, जहां कई विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। ये बिरला मौका है जब सरकार खुद आगे चलकर अपना विश्वास मत साबित करना चाह रही है  और विपक्ष की इसमें तनिक भी दिलचस्पी नहीं है। दरअसल, पायलट और बीजेपी दोनों को, सरकार का फ्लोर पर आना सूट नहीं करता। क्योंकि विशेष सत्र में किसी मुद्दे पर चर्चा में संकल्प प्रस्ताव पारित करवा कर गहलोत सरकार पायलट कैंप के विधायकों को जयपुर लौटने न सिर्फ मजबूर कर देगी बल्कि  किसी न किसी संकल्प प्रस्ताव को लाकर पार्टी व्हिप लागू कर देगी। ऐसी सूरत में विधायक न आए या विपरीत गए तो कार्रवाई होगी और सरकार का साथ दिया तो अलग मैसेज जाएगा। इसका फायदा, सरकार को यह भी मिलेगा कि पूरे छह महीने की 'पॉलिटिकल इम्यूनिटी' सरकार को मिल जाएगी। इसी रणनीति पर अलग-अलग लोग काम कर रहे हैं। मगर केबिनेट नोट के बावजूद विधानसभा सत्र नहीं बुलाया गया, अब तकनीकी रूप से स्पष्ट कर दूसरा नोट भेजा गया है। 21 दिन तक राजभवन अगर सत्र को टालने का कोई तकनीकी रास्ता निकाल ले तो फिर सरकार को होटल से बाहर आना पड़ेगा, विधायकों के फ्री होते ही एक जोर और लगाने की तैयारी हो चुकी है। 21 दिन मिल जाएं तो नंबर गेम से पासा पलटने का खुला खेल हो सकता है। इसीलिए सरकार 'आज और इस वक्त' की नीति अपनाए हुए हैं। उधर, राजभवन का तकनीकी परीक्षण अभी खत्म नहीं हुआ है। राजभवन और सरकार के बीच बनी ये स्थितियां  'अविश्वास का अतिरेक नहीं तो क्या है

  


राजस्थान की राजनीति में चल रहे इस धारावाहिक में एक किरदार, केन्द्र सरकार का भी है। प्रदेश में भी वो सब कुछ हो रहा है, जो बीते समय में बाकी राज्यों में हुआ है। यहां केन्द्र सरकार की एजेंसियां जिस रूप में अति सक्रिय हुई है्ं,  उसके पीछे संवैधानिक सवाल भले ही न खड़े किए जा सकें लेकिन नैतिकता और राजनीतिक द्वेष की कार्रवाई की जनचर्चाएं कौन रोक सकता है। क्यों और किस-किस पर छापे मारे जा रहे हैं। आम दिन होते तो फिर भी गले उतारा जा सकता था। इस वक्त  के घटनाक्रम केन्द्र और राज्य सरकार के बीच की तल्खी के अतिरेक को बता रहे हैं। 



 अब जरा पायलट गुट के राजनीतिक अतिरेक पर भी गौर कीजिए। अपनी ही सरकार, अपने ही राज्य की मशीनरी पर एक पार्टी अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहे व्यक्ति का अविश्वास अपने आप में अतिरेक है। दूसरा अतिरेक यह कर बैठे कि उस हरियाणा राज्य को अपनी शरण स्थली बना लिया जो बीजेपी प्रशासित राज्य है। तीसरा अतिरेक यह कि राजस्थान पुलिस की कार्रवाई से उन्हें हरियाणा पुलिस बचाने में लगी है। ये पूरा घटनाक्रम पायलट और कांग्रेस के बीच का तो है ही, मगर दो राज्यों में विशुद्ध राजनीतिक घटनाक्रम में दखलअंदाजी का मामला बनता है। ऐसा अतिरेक पहले भी कई बार होता रहा है। 

दरअसल, पायलट कैंप में बेचैनी है कि अगर विधानसभा सत्र बुला लिया जाएगा तो पार्टी का व्हिप लागू होगा। विधानसभा में आए तो मुसीबत, न आए तो मुसीबत। सरकार के कोई  ऐसा प्रस्ताव जिसमें व्हिप हो, उसका समर्थन किया तो अब तक किया गया विरोध बेकार चला जाएगा, समर्थन न किया तो सदस्यता चली जाएगी। पायलट कैंप के सूत्र बता रहे हैं कि विधायकी छोड़ने में भी कोई संकट नहीं लेकिन ऐसा हो भी जाए और सरकार का बहुमत कायम रहे तो ऐसा 'बलिदान' किस काम का ? ऐसा तो तब हो जब संख्याबल में ये स्थितियां बन जाएं कि हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे...


अब बात बीजेपी के अतिरेक की...


राजस्थान से जीत कर दिल्ली में बैठे बीजेपी नेताओं की सक्रियता में ये अतिरेक का दौर नहीं तो क्या है ? राज्य इकाई में न सतीश पूनिया उतने आक्रामक हैं और न गुलाबचंद कटारिया और राजेन्द्र राठौड़ । पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की 'सनसनीखेज चुप्पी' के पीछे राज को टटोलने में राजनीतिक पंडितों की खासी दिलचस्पी है। मगर केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के बयानों में आक्रामकता बहुत कुछ कह रही है। कांग्रेस भी इस घटनाक्रम में उन्हीं पर टारगेट किए बैठी है। दरअसल, बीजेपी में अंदरुनी राजनीति का भी ये अतिरेक नहीं तो क्या है ? राजस्थान बीजेपी को मालूम है कि इस पूरे घटनाक्रम में लक्ष्य कहां तक साधना है। ये संकट कांग्रेस के भीतर ही रहे या फिर इतना बढ़ जाए कि राष्ट्रपति शासन लग जाए। इसके आगे की बात कोई नहीं करना चाहता। क्योंकि ये सरकार अगर गिर जाए तो बीजेपी के अंदरुनी घटनाक्रमों का अतिरेक बाहर आने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। 

इन सारे पहलूओं को जनता देख रही है। पार्टी पॉलिटिक्स का ये घमासान जनता को हैरान किए हुए हैं। यह मामला यहीं थम जाए तो बेहतर हैं अन्यथा राजस्थान की राजनीति में आने वाले वक्त में ऐसे कई घटनाक्रम होते दिखेंगे जो लोकतंत्र के पतन को और अधिक अधोगति देने वाले हों। राजनीति के बदले किरदारों में जनता हर किरदार का अतिरेक देख रही है। संस्कृत श्लोक की उक्ति यहां सटीक बैठती है - अति सर्वत्र वर्जयेत ...

#RajasthanPoliticscrisis राजस्थान की राजनीति का अगला अध्याय फिर राजभवन लिखेगा..!

क्या राजस्थान की राजनीति का अगला अध्याय फिर राजभवन लिखेगा ..! 

. राजस्थान की राजनीति में फिर दोहराया जा रहा 27 साल पुराना किस्सा

. तब भैरोंसिंह शेखावत, आज  धरने पर गहलोत

. तब - सरकार बनाने का जतन ,अब - सरकार बचाने के लिए धरना
. तुरंत विधानसभा सत्र चाहती है गहलोत सरकार   




 - विशाल सूर्यकांत

राजनीति में किस्से कभी पुराने नहीं होते , ताजा सियासी हवा क्या चली, अतीत के पन्नों पर जमी गर्द अपने आप झड़ जाती है, लिखी इबारत फिर प्रासंगिक हो जाती है । दशकों पहले की घटनाएं नई शक्ल हासिल कर फिर सामने आ जाती है। राजस्थान में आज राजभवन में मुख्यमंत्री और विधायक दल के धरने के घटनाक्रम को ही लीजिए। 27 साल बाद, फिर एक मुख्यमंत्री राजभवन पर धरने में बैठे हैं। फर्क बस ये है कि पहले धरना सरकार बनाने के लिए था तो अब सरकार बचाने के लिए ...पहले भी हुआ है ऐसा हाई वोल्टेज " पॉलिटिकल ड्रामा " ...

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने विधायकों के साथ राजभवन में धरने पर बैठ गए। न ये घटनाक्रम पहला है और न हीं इस तरह की सियासत। आज गहलोत हैं तो कल भेरोंसिंह शेखावत थे। बदलते किरदारों में पुराना किस्सा किस तरह प्रांसगिक हो चला है...ये जानने के लिए आपको मेरे साथ 1993 के दौर में चलना होगा। क्योंकि राजभवन में मुख्यमंत्री के धरने के इस आइडिए के जनक गहलोत नहीं, भेरोंसिंह शेखावत हैं। गहलोत उन्हीं की राह पर चल पड़े हैं।  

दरअसल, हुआ यूं कि 1993 में राजस्थान विधानसभा चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा बनी। यानि किसी भी दल को बहुमत नहीं। हां मगर सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में भाजपा को बढ़त जरूर मिली। ये वाकिया बाबरी केस में बर्खास्त हुई सरकारों के बाद का है। देश भर में बीजेपी सरकारें बर्खास्त हुई। राजस्थान में फिर चुनाव हुए और परिणामों में किसी को बहुमत नहीं मिला। राजभवन एक्टिव होना लाजमी था। सरकार बनाने का रास्ता खोजे। 
जैसे आज आरोप लग रहे हैं, ठीक वैसे तब भी लगे थे। आज की तरह उस वक्त भी बलिराम भगत की भी 'मजबूरी' सियासी बयानबाजियों में छाई रही। 

          

                                               
        स्व.बलिराम भगत- 1993, तत्कालीन राज्यपाल, राजस्थान ( फोटो- इंटरनेट पर उपलब्ध)


दरअसल, उस वक्त में राजस्थान विधानसभा का घटनाक्रम जिस रूप में था, उसमें भारतीय जनता पार्टी के बहुमत के जादुई आंकडे से चंद कदम दूर रह गई और 95 सीटों पर बीजेपी का रथ रूक गया। 

ये घटनाक्रम बाबरी ढांचा गिराने के बाद का है। उस वक्त देश में बीजेपी सरकारें बर्खास्त की गई। राजस्थान में फिर चुनाव हुए मगर किसी को बहुमत नहीं मिला।  बीजेपी के पास 95  विधायक थे तो  कांग्रेस के पास 76 का नंबर।  सत्ता का सारा खेल, जनता दल और निर्दलियों पर जा टिका। जनता दल के 6 और21 निर्दलियों को लेकर खूब दांव-पेंच लड़ाए गए।  

राजस्थान विधानसभा में 1993 में ये थी स्थिति

भारतीय जनता पार्टी – 95

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया –1

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस -76

जनता दल – 6

निर्दलीय -21

          स्व.हरिदेव जोशी,पूर्व मुख्यमंत्री,राजस्थान (फोटो- इंटरनेट पर उपलब्ध) 


दूसरी पार्टियों और निर्दलियों को साधने में कांग्रेस में हरिदेव जोशी और बीजेपी में भेरोंसिंह शेखावत, सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर गेम में जुट गए। उधर, राजभवन ने सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनी बीजेपी के बजाए कांग्रेस विधायक दल में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई।
उस वक्त के राजनीतिक पत्रकारों का कहना है कि बलिराम भगत मन बना चुके थे कि हरिदेव जोशी ही शपथ लेंगे, चाहे विरोध रोकने के कर्फ्यू भी क्यों न लगाना पड़े। सेकेंड पार्टी को सरकार बनाने का न्योता भी दे दिया गया। 
 

                            स्व.भैरोंसिंह शेखावत,पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान

उस वक्त में भैंरोंसिंह शेखावत ने राजभवन में धरना देकर शानदार बाउंस बेक किया। सत्ता हासिल करने के लिए शेखावत ने वो दांव अजमाया जो राजस्थान की राजनीति में अब तक नहीं हुआ था। दरअसल,वे अपने साथ जनता दल और कुछ निर्दलियों को जोड़ने के बाद संख्याबल को लेकर विश्वस्त हो चुके थे। धरने की वजह से ऐसी स्थितियां बनी कि बलिराम भगत ने अपना निर्णय बदला, भेरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और शेखावत ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली।
                   अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री,राजस्थान

राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री गहलोत भी इसी राह पर चल पड़े हैं। लेकिन इस बार सरकार बनाने का नहीं, सरकार बचाने का दांव है। केबिनेट के जरिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का प्रस्ताव पारित करवा कर राजभवन को भेज दिया गया है। राजभवन को इस पर फैसला लेना है। राजभवन में धरने की स्क्रिप्ट तो हूबहू लिख दी गई है लेकिन राजस्थान की राजनीति के नाटक का अगला अध्याय अब राजभवन लिखेगा, ये तय है। 

सोमवार, 13 जुलाई 2020

#Breaking : #RajasthanPoliticalCrisis में कीजिए #PilotVSGehlot जंग में आगे क्या होने वाला है ..#Rajasthan की बात, विशाल सूर्यकांत के साथ ...

तकरार आर-पार, दोनों गुट चुनाव के लिए भी तैयार..! 




 #Breaking - कांग्रेस विधायक दल में अनुशासन की कार्रवाई को लेकर प्रस्ताव पारित, पायलट को कांग्रेस अध्यक्ष से हटाया, गोविंद सिंह डोटासरा बने नए अध्यक्ष, कई बार मनाने के बावजूद नहीं आए सचिन पायलट विधायक दल की बैठक में 101 विधायक मौजूद , बीटीपी के विधायक राज कुमार रोत के हवाले से गहलोत कैंप पर दबाव डालने का वीडियो सचिन पायलट की टीम ने जारी किया। 

- विशाल सूर्यकांत 


 राजस्थान की राजनीति में जिस रूप में घटनाक्रम बदल रहे हैं धीरे-धीरे समझौते की गुंजाइश भी खत्म होती जा रही है। मुख्यमंत्री गहलोत और उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष के बीच अब बात राजी-नाराजगी से काफी आगे बढ़ चुकी है। पायलट के साथ 18 विधायक साफ तौर पर दिख रहे हैं। लेकिन दावा यह कि संख्या बल और ज्यादा है, फ्लोर टेस्ट में सब स्पष्ट हो जाएगा। वहीं मुख्यमंत्री गहलोत कैंप इस मामले में शुरू से आर-पार के मूड में है। क्योंकि ये एक महीने में दूसरी बार सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें हुई है। घटनाक्रम में आईटी और ईडी की कार्रवाइयों ने दोनों गुटों के बीच आग को और भड़काने का काम कर लिया है। राजस्थान के घटनाक्रम में सचिन पायलट अगर 36 विधायक अपने साथ जुटा लेते हैं तो ऩए दल के रूप में मान्यता मिल सकती है अन्यथा दलबदल कानून के दायरे में आएंगे। सवाल यह है कि सचिन पायलट कैंप में क्या वो लोग हैं जो अपनी विधायकी दांव पर लगाकर भी सचिन पायलट के साथ बने रहें। दरअसल, राजस्थान में ये घटनाक्रम अचानक नहीं बदला है,दोनों गुटों की ओर से इसकी स्क्रिप्ट पहले तैयार कर की जा चुकी हैं। गहलोत कैंप रघुवीर मीणा के रूप में नया प्रदेशाध्यक्ष भी तलाश कर चुका है, हर नेता का विकल्प तैयार कर लिया गया है। फ्लोर टेस्ट में अगर संख्याबल कम हुआ तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, फिर से चुनाव में जाने की बात भी कह चुके हैं। इधर, सचिन पायलट के विरुद्ध 120 बी की धारा, यानि राजद्रोह के मामले में पुलिस एजेंसियों ने नोटिस भेजा है। गहलोत कैंप के लोगों का दावा है कि उनके पास ऐसे इनपुट्स हैं कि सरकार को अस्थिर करने की साजिश के तार सीधे रूप से कई नेताओं से जुड़ रहे हैं। पायलट कैंप के विधायकों को डर है कि गहलोत इस मामले में गिरफ्तारियां भी करवा सकते हैं। 


आलाकमान को पूरे घटनाक्रम का पहले से पता है, इसीलिए वो कोशिशें भी सधे रूप में कर रहा है। अविनाश पांडे और रणदीप सिंह सूरजेवाला लगातार पायलट कैंप से लौट आने की अपील भी कर रहा है। लेकिन पायलट समर्थक आज भी विधायक दल की बैठक में शामिल होने को तैयार नहीं, उन्हें इंतजार है विधानसभा पर होने वाले फ्लोर टेस्ट का, जहां उनका दावा है कि गहलोत के साथ नजर आ रहे कई विधायक भी उनका साथ देंगे और सरकार को गिराया जा सकता है। 


आलाकमान की डेमेज कंट्रोल टीम

 के.सी.वेणुगोपाल, प्रदेश प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे, अजय माकन,रणदीप सिंह सूरजेवाला 
 नेपथ्य में - अभिषेक मनु सिंघवी, पी.चिदम्बरम, कपिल सिब्बल 



पायलट के साथ कितने विधायक...



दिल्ली में व्यक्तिगत रूप से 18 विधायक नजर आ रहे हैं। लेकिन असल संख्या फ्लोर टेस्ट में सामने आने का दावा किया जा रहा है। दरअसल, सचिन पायलट के साथ या तो बिल्कुल नए युवा विधायक और पहली बार विधायक बने लोग हैं, जिन्हें लगता है कि पायलट के सहारे वो अगली पंक्ति के नेताओ में शामिल हो सकते हैं। इन टीम में प्रत्यक्ष रूप से तो मुकेश भाकर, वेदप्रकाश सोलंकी, रामनिवास गावड़िया,राकेश पारीक पायलट कैंप की ओर से भेजे गए वीडियो में नजर आ रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से दानिश अबरार, प्रशांत बैरवा, चेतन डूडी, रोहित बोहरा जैसे नेता पायलट के ईर्द-गिर्द दिखते रहने के बावजूद अब गहलोत कैंप में आ चुके हैं। सीएमओ में बकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर इन युवा नेताओं ने कहा कि हमारे परिवार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ हैं। इसीलिए पायलट के साथ तब तक ही हैं, जब तक वो कांग्रेस से भीतर होंगे। पायलट के साथ तीसरी केटेगरी के वो नेता हैं , जो राजस्थान की राजनीति में दिग्गज रहे हैं लेकिन मौजूदा सरकार में जिनकी पूछ-परक नहीं हो रही । जिनमें भरतपुर के पूर्व महाराज विश्वेन्द्र सिंह, शेखावटी के दिग्गज नेता भंवरलाल शर्मा, पूर्व राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी जैसे नेता हैं। इसके अलावा शेष वो विधायक हैं, जिनके विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर वोट निर्णायक हैं। ये लोग राजेश पायलट के भी करीबी थे।




 गहलोत के साथ कितने विधायक 



दावा 109 का है लेकिन हकीकत आज विधायक दल की बैठक में और स्पष्ट होगी। दरअसल, पायलट की समकालीन राजनीति के वो सभी चेहरे जो आने वाले वक्त में उनके प्रतिद्वंद्धी हो सकते हैं, सभी अशोक गहलोत के साथ नजर आ रहे हैं। जिसमें प्रताप सिंह खाचरियावास,डॉ.रघु शर्मा, हरीश चौधरी, रघुवीर मीणा जैसे नेता हैं। जिन्हें मालूम है कि अशोक गहलोत की राजनीतिक पारी के बाद उनका नंबर आना तय है। पायलट के साथ जुड़़ने में हमउम्र और लगभग समान राजनीतिक अनुभव उन्हें आने वाले कई सालों तक आगे मौका नहीं दे पाएगा। पायलट युवा हैं और आलाकमान के भी करीबी हैं। इसीलिए उनकी कोशिश है कि पायलट का राजस्थान की राजनीति का चेप्टर, इसी घटनाक्रम में तय हो जाए। इसीलिए वो सरकार के साथ हैं, मुख्यमंत्री के साथ खड़े हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री की आम जनता के बीच अच्छी छवि के विपरीत चले जाना भी संभव नहीं और न ही ऐसा करने के पीछे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में कोई वोट बैंक की मजबूरी आड़े आ रही है। इसीलिए वो मजबूती के साथ सरकार के साथ खड़े हैं। 





 बीजेपी क्या करेगी ..!

बीजेपी पूरे घटनाक्रम में अभी वेट एंड वॉच की भूमिका में है। बीजेपी इसी से सन्तुष्ट हो सकती है कि वो राजस्थान में भी सरकार को अस्थिर होता देख रही है। पायलट का विधायक बल कितना है, सरकार क्या बहुमत की स्थितियों में है, इस पहलूओं के साथ बीजेपी को अपने भीतर पनप रहे गुटों का भी ख्याल करना होगा। क्योंकि अगर सरकार के विश्वास मत हासिल न कर पाने की स्थितियां बनेंगी तो बीजेपी में भी सत्ता को लेकर खींचतान होगी। दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे समेत ज्यादातर प्रदेश के नेता खामोश हैं और दिल्ली में बैठे नेता गजेन्द्र सिंह, अर्जुन मेघवाल, राज्यवर्द्धन सिंह राठौ़ड़ जबर्दस्त रूप में से सक्रिय हैं।