अति सर्वत्र वर्जयेत – (1)
जनप्रतिनिधि या चुनी हुई कठपुतलियां..!!!
. देश में पनपती बाड़ाबंदी संस्कृति के विरुद्ध विचारों का मुक्त प्रवाह
. लोकतंत्र में बाड़ाबंदी की बढ़ती रवायत पर खुला पत्र
. देश-प्रदेश की राजनीतिक परम्परा और जनता के मन की बात
- विशाल सूर्यकांत
श्रीमान,
सभी विधायक महोदय
राजस्थान की गांव-ढ़ाणियों में शाम ढ़लते ही जमने वाली 'सजग' चौपालों पर यकीनन यह सवाल उठ रहा होगा कि 'अपना' नेता 'होटल-रिसोर्ट' में क्यों जा बैठा है। कुछ समर्थक होंगे तो कुछ विरोधी, मगर एक बात पर सभी के मन में शंका होगी कि नेताजी का 'खेल' क्या है। माननीय महोदय, क्या आप जनता को बता पाएंगे कि नेता का समर्थन और विरोध तो आप अपने कार्यकर्ताओं के साथ भी कर सकते थे। अचानक आपका इस तरह कैद हो जाना क्यों जरूरी था ?... विधायक दल में सेंधमारी का खतरा था, ये कहा जाना आपकी नैतिक पर सीधे सवालिया निशान है। क्या आप इतने सहज उपलब्ध थे ?
राजस्थान विधानसभा - फाइल फोटो
राजनीतिक घटनाक्रमों में आपका बर्ताव, कहीं आपको जनता के मन में स्वीकार्य के बजाए संदिग्ध न बना दे। एकजुटता दिखाने के लिए एक साथ रहना पड़े तो इसे ‘एकजुटता’ नहीं बल्कि ‘आपस में अविश्वास की अवस्था' कहा जाता है।
इस वक्त आप होटल या रिसोर्ट में बैठें हैं , तो यकीकन भरपूर फुरसत होगी...। खुद से पूछिएगा कि कहीं ये घटनाक्रम आपकी निष्ठा, ईमानदारी, आपकी नैतिकता पर सवाल तो नहीं खड़े कर रहा।
राजस्थान विधानसभा में कुछ विधायक संख्या -200 सदस्य
आपका यूं होटल-रिसोर्ट में चले जाना हैरान करने वाला है। अपने क्षेत्र ने आपका भरपूर साथ दिया, तभी विधायक बनें, फिर डर किस बात का है। चुनावों में जात-पात के झंझावतों से गुजरे हैं, आरोप-प्रत्यारोप और गुटबाजी के समंदर से निकल कर विधायक बने हैं। कोरोना के इस वक्त में, क्या आपका इस तरह छिप जाना मुनासिब है ? आप तो ‘लीडर’ हैं तो फिर ये कैसी लीडरशीप है ...
माननीय, आगे थोड़ा कड़वा कथन है। इसके लिए माफी लेकिन कहना जरूरी है कि आप तो “सूदखोर साहूकार” से भी निचले स्तर पर चले गए। जिस तरह एक निष्ठुर साहूकार, जनसंकट में भी अपनी तिजोरी नहीं खोलता। ठीक वैसे ही आप भी कोरोना काल में, जनता को वोटबैंक की तिजोरी में बंद कर चुके हैं। जनता के दुख-दर्द में काम आने का 'सूद' तो आपको चुकाना था। मगर आप तो खुद ही होटल,रिसोर्ट में जाकर किसी ''साहूकार की तिजोरी'' बन बैठे। अब भी वक्त है तिजोरी का दरवाजा तोड़िए, बाहर आइए। आपकी इच्छा के बिना न तो राजनीतिक सेंधमारी संभव है और न ही बाड़ाबंदी।
ये आपके सम्मान के विरूद्ध है। जनता के विश्वास के विरुद्ध है। ये आपकी छवि को जनता में बिगाड़ कर रख देगी। देश-प्रदेश में कोरोना से जनता त्राहिमाम कर रही है।राजस्थान में कोरोना रोज एक हजार लोगों को संक्रमित कर रहा है। आपकी विधानसभा क्षेत्र में भी संक्रमण फैल रहा है। सोशल डिस्टेसिंग पर उपदेश आपने भी बहुत दिए हैं, आप खुद कितना अमल कर रहे हैं वो भी जनता देख रही है। सरकार बनाने और गिराने के खेल पहले भी होते रहे हैं लेकिन चुने हुए जनप्रतिनिधियों का दुरुपयोग दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
कोरोना की वजह से रोजगार ,उद्योग धंधे सब बेपटरी है। सिर्फ जनता ही नहीं, आपको “चुनावी चंदा” देने वाले लोगों के भी कारोबार ठप्प पड़े हैं। यहां सवाल, मुद्दा सरकार के रहने या जाने या राजनीतिक टीका-टिप्पणियों का नहीं है। सवाल तो है आपकी गरिमा और आपको मिले वोटों के सम्मान का है। किसी का भी समर्थन कीजिए, विरोध कीजिए ये आपका हक
है।
मेरा मुद्गा इतना भर है कि होटल-रिसोर्ट में 'बंधक' कहलाने के बजाए जनता के बीच जाइए। लोगों को यह मालूम होना चाहिेए कि आपकी जीत कोई जातीय समीकरण
और तत्कालिक परिस्थितियों का तुक्का नहीं थी बल्कि आज भी जनता के विश्वास का तीर आपके
तूणीर (तरकश) में हैं। इसके दम पर अब चाहें उस पर निशाना साध सकते हैं।
विधायकों का इस बार बाडेबंदी के लिए हरियाणा जाना राजस्थान के राजनीतिक इतिहास की अप्रत्याशित घटना है। यह बताता है कि आपका अपने आप पर भी भरोसा नहीं। इसी तरह सरकार का विधायकों के साथ होटल में चले जाना भी स्वीकार्य नहीं। मुद्दा यह है कि इतने दिनों से राजभवन क्यों चुप है। क्यों नहीं फ्लोर टेस्ट करवा कर इस विवाद को खत्म कर देता। कोरोना में क्या विधानसभा से ज्यादा सुरक्षित जगह होटल और रिसोर्ट हैं !
चाहे राजस्थान के विधायकों का हरियाणा जाना हो या फिर मध्यप्रदेश, गुजरात,कर्नाटक के विधायकों का राजस्थान में पॉलिटिकल ट्रयूरिज्म ..घटनाएं नई है, क्रम वही पुराना है। इसे चुनी हूई सरकारों के प्रति साजिश कह दीजिए या असंतोष की चिनगारियां...अपनी-अपनी राजनैतिक सुविधा के हिसाब से धारणाएं बनाई जा सकती हैं। मगर सवाल यह है कि इतने दिनों से होटल-रिसोर्ट में चाहे-अनचाहे 'बंधक' बना जनप्रतिनिधि, लोकतंत्र में विश्वास जगा पाएगा ..?
यह घटनाक्रम आपको
जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि 'केटल मार्केट की खुली मंडी' में बिठा रहा है। पार्टी के किसी नेता का विरोध और
समर्थन आपका हक़ हो सकता है। लेकिन याद रखिएगा' आपसे मिलना 'जनता का हक' है। होटल,रिसोर्ट में ये बाडाबंदी आपकी विश्वसनीयता, नैतिकता और स्वीकार्यता पर 'संदिग्धता' का मुलम्मा' चढ़ा रही है।
याद कीजिए, पहली जीत के बाद आपने जनता से क्या कहा था और क्या हो रहा है। सत्ताएं तो आनी-जानी है, आपकी असल ताकत 'राजस्थान
की जनता' है। समर्थन या विरोध आपका हक़ है, लेकिन वो जनता के बीच होना चाहिए। अगर आप चाहें तो राजनीति में बढ़ती होटल-रिसोर्ट में बाडाबंदी / चुनी हुई सरकार में सेंधमारी की संस्कृति खत्म करने का भी ये निर्णायक मौका भी बन सकता है।
वैसे इन सब स्थितियों के लिए अकेले विधायक ही जिम्मेदार मानना भी ठीक नहीं। इस दौर में, जनप्रतिधियों की स्थिति 'चुनी हुई कठपुतलियों से कम नहीं' है। जनता का विश्वास तो पांच साल में एक बार जीतना होता है लेकिन इसके बाद बड़े नेताओं का विश्वास जीतने गाहे-बगाहे अक्सर परीक्षा देनी पड़ती है। ये हमारे राजनीतिक कल्चर का हिस्सा बन गया है कि चुने जाने के बाद भी जनप्रतिनिधि, जनता और आला नेता के बीच चक्कर काटता रहता है। काम न हो जनता घेरेगी, काम करवाना है तो नेताजी की मिजाजपुर्सी करनी होगी। सरकार बनी तो मंत्री बनने, न बनने का मुद्दा जबर्दस्त रूप से हावी रहता है।दरअसल, जनप्रतिनिधि, सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष की रणनीति का मोहरा बन चुके हैं। इस दौर में तमाम संवैधानिक और राजनीतिक ओहदेदारों की जिम्मेदारी बनती हैं कि वो कठपुतली कल्चर को खत्म करने में अपनी भूमिका निभाएं। विपक्ष को चाहिेए कि जनता का मेंन्डेट है, तो पांच साल का सब्र जरूरी है । अनावश्यक जल्दबाजी, और सेंधमारी की कोशिशें, लोकतंत्र के आत्मा को कलुषित कर देगी।
प्रधानमंत्री से लेकर सरपंच तक, विधानसभा अध्यक्ष,मुख्यमंत्री से नेता प्रतिपक्ष तक, दलों के राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्षों तक, पूरी व्यवस्था को तय करना होगा। आपके कदम, देश-प्रदेश में भविष्य की राजनीति के लिए भी रास्ते तैयार कर रहे हैं। हर राजनीतिक घटनाक्रम का पटाक्षेप, अगर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में हो रहा है, इसका मतलब साफ है कि किसी बड़े ओहदेदार ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई। आपकी चुप्पी/उदासीनता/ आपका प्रश्रय, कहीं छोटे लाभ के लिए पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर 'पॉलिटिकल फंडिंग करने वाले एजेंट्स' को हावी न कर दे।
vishal.suryakant@gmail.com
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अच्छा लेख सर
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