रविवार, 28 जनवरी 2018

#DataPrivacyDay हमारा डेटा और हमसे ही वसूली ...! .ये जुल्म रोको सरकार ...

#DataPrivacyDay
 
हमारा डेटा और हमसे ही वसूली ...! .ये जुल्म रोको सरकार ...



 
- विशाल 'सूर्यकांत'

आज डेटा प्राइवेसी डे है...आप सोच रहे होंगे तो इस दिन का हमसे क्या वास्ता...ये बात सही भी लगती है क्योंकि अब तक सुनते आए हैं कि रोटी,कपड़ा और मकान हमारी पहली जरूरत है...बड़ी आबादी को डेटा का मतलब ही नहीं पता तो डेटा की सुरक्षा को लेकर क्या बात कीजिएगा...लेकिन जरा रूकिए मुद्दा जितना सोच रहे हैं शायद उससे कहीं ज्यादा बड़ा है। डेटा प्राइवेसी पहले आपका निजी मामला हो सकता था,लेकिन अब सरकार आधार जैसी योजना लाकर बल्क में डेटा यानी आपकी निजी जानकारियां ले रही है, इसीलिए अब ये निजी मसला नहीं सार्वजनिक रूप से निजी जानकारियों लेने और उसे सुरक्षित रखने का मसला बन गया है। इस देश में जून 2017 का अनुमान था कि करीब 420 मिलियन लोग इंटरनेट के उपभोक्ता हो चुके हैं, 229.24 मिलियन स्मार्ट फोन यूजर है। इनका डेटा सीधे हैकर्स और आवांछनीय गतिविधियों की जद में कभी भी आ सकता है, क्योंकि इंटरनेट के उपयोग का चलन ज्यादा है, उपयोग को लेकर सतर्कता और जागरूकता नहीं के बराबर है।

आधार को ही लीजिए, आप अपना डेटा सरकार को दे रहे हैं, ई-मित्र या कियोस्क वाला न जाने किस तरह से उसका उपयोग कर रहा है। आनन-फानन में गलत बन जाए तो कौन जिम्मेदार है ? उपर से सुधार के बदले सौ से पांच सौ रूपए तक लिए जा रहे हैं। हर योजना को आधार से लिंक करवाने के नाम पर कितनी राशि ली जा रही है, ये अंदाजा लगाना हो तो अपना आधार सुधरवाने चले जाइए, पडोस के किसी ई-मित्र सेंटर पर । आज की तारीख में मोहल्ले में सबसे ज्यादा वीआईपी स्टेटस आधार सुधार,आधार लिंक करवाने वाले दुकान मालिक का है।  पैन कार्ड और आधार में नाम में एक अक्षर, पता संशोधन,ई-मेल संशोधन के लिए उसकी अपनी एक रेट लिस्ट है। शहरों में तो फिर भी मोल-भाव की गुंजाइश आप ले सकते हैं। गांवों में तो व्यक्ति को पता नहीं कि क्या,क्यों और कैसे हो रहा है। उसे बस इतना भर पता है कि सरकार ने जरूरी कर दिया है आधार नहीं तो आपका मानों वजूद ही नहीं...सही वजूद हासिल करने के लिए न जाने कितने खर्च होंगे...ये नहीं पता। जीडीपी बढ़ाने में लगी सरकार ये नहीं पता लगाने की जहमत नहीं उठा रही कि 98 करोड से भी ज्यादा आधार कार्ड को लिंक करवाने में, उनमें संशोधन करवाने में कितनी रकम का लेन-देन हो रहा है, क्योंकि इसकी न तो रसीद है या डिजीटल पेमेंट का कोई मॉडल...जहां जितनी भीड़, उतनी ही लूट ...सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक देश में 98 करोड़ से ज्यादा लोग अपना आधार बना चुके हैं। स्मार्ट फोन या अन्य किसी डिवाइस से इंटरनेट यूजर और देश में जरूरी सेवाओं का उपभोक्ता होना, दोनों डेटा सुरक्षा के खतरे के मामले में एक ही पायदान पर खड़े हैं। आपको याद होगा कि चंद दिनों पहले देश में लाखों लोगों का आधार का डेटा लीक करने की खबर आई थी। उस वक्त आधार को देख रही सरकारी एजेंसी यूआईडीएआई ने इसे खारिज किया था। लेकिन चंद दिनों पहले वित्त मामलों की संसदीय कमेटी की रिपोर्ट आई, उसमें भी आधार की प्राइवेसी पर चिंता जताई गई। संसदीय समिति ने आधार समेत अन्य योजनाओं में देश में डेटा सुरक्षा के लिए एक पुख्ता कानून की वकालत की है। संसदीय कमेटी ने माना कि देश तेजी से डिजिटल कॉलोनी में तब्दील होता जा रहा है और ऐसे में डेटा की सुरक्षा के लिए इसरो और परमाणु ऊर्जा की तर्ज पर एक अलग से महकमा बनाने की जरूरत है। जिसकी रिपोर्टिंग सिर्फ प्रधानमंत्री के पास हो। 



बीते दिनों में आपने रेनसमवेयर जैसे वायरस के हमले की खबरें भी पढ़ी होंगी। डेटा यूजर्स बढ़े हैं तो हैकर्स की तादाद भी बढ़ी है। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं का कारोबार बढ़ा है तो आपकी निजी पसंद और नापसंद को मार्केट में बेचने का कारोबार यानी डेटा का बिजनेस भी बढा है। आसान शब्दों में इतना भर जान लीजिए कि आप गूगल पर मेडिकल इन्श्योरेंस के लिए कुछ सर्च करते हैं और आपको चंद पलों में इसी से जुड़े विज्ञापन मेल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिलने लगते हैं। कई दफा हो सकता है कि आपको बकायदा कंपनियों से फोन आने लगें कि आपने इस बारे में सर्च किया था, बताइए किस तरह से आपकी सहायता कर सकता हूं। इंटरनेट पर इस तरह के मामले व्यक्तिगत खोज का असर भर हैं, सोचिए जरा जब सरकार में दर्ज लाखों-करोड़ों जानकारियां ऐसे कारोबारी, हैकर्स या सर्विस प्रोवाइडर्स के हाथ लग जाएंगी तो क्या-क्या हो सकता है। फोन कर आपसे ओटीपी नंबर मांग कर बैंक से रुपए ले उड़ने का मामले लगातार सामने आते रहते हैं। 



देश में आधार कार्ड की अनिवार्यता होती दिख रही है, हालांकि अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है लेकिन कई मामलों में अनिवार्यता लगभग हो ही चुकी है। आपके हक का मुनाफा,आपकी निजी जानकारी, आपकी जमा रकम में सेंधमारी, आपके पर्सनल प्रोफाइल पर नजर...न जाने कितने खतरे समाए हुए हैं डेटा सिक्यूरिटी के इश्यू में। भले ही ये आंकड़ा दस फीसदी हो लेकिन ये सच है कि देश में 10 फीसदी लोगों के लिए रोटी, कपड़ा आैर मकान के साथ डेटा भी जीने की अनिवार्य जरूरतों में शुमार हो चला है। जो इंटरनेट उपभोक्ता नहीं थे वो आधार जैसी सरकारी योजनाओं के लिए जरिए अपना डेटा शेयर कर रहे हैं।   दुनिया भर 'आधार' की चर्चा का क्या माहौल है, ये इस बात से समझ लीजिए कि दुनियाभर में मशहूर अंग्रेजी डिक्शनरी ओक्सफोर्ड ने पहली बार अंग्रेजी की तरह 2017 के हिंदी शब्द की घोषणा की है।

 मुद्दा ये कि क्या देश के राजनीतिज्ञों का इस पर ध्यान है ? क्या धर्म और जातिवादी राजनीति में मशगूल देश के नेताओं का ध्यान देश की आवाम के सामने आ रही इन भविष्य की चुनौतियों पर हैं ? क्या हमारे नेता डेटा सिक्यूरिटी के मामले में कुछ जानते हैं ? इस देश को राजनीति ही चलाती है...क्या हमारी राजनीति की दिशा इन खतरों को देख पा रही है ? सवाल इसीलिए हैं क्योंकि आधार लीक मामले में पहले खबर को पूरी तरह खारिज कर दिया जाता है। इसके बाद खबर आई है कि अब आधार के बजाय वर्चुअल आईडी का उपयोग होगा। आपका आधार नंबर, किसी और शक्ल में बदल जाएगा। इसे वीआईडी यानी वर्चुअल आईडी कहा जा रहा है। एक मार्च से आधार की सारी मुहिम वीआईडी में शिफ्ट हो जाएगी। क्या इन बातों पर पहले गौर नहीं हो सकता था। देश में हालात ये हैं कि लखनऊ जैसे शहर में रैन बसरों में कंबल के लिए एक अदद टेंट के निजी ठेकेदार स्वघोषित रूप से आधार को अनिवार्य कर दिया गया। हैकर्स और डेटा के कारोबारियों की नजर कहां और किस रूप में हैं, कंबल मामले से समझ लीजिए। अब वक्त का तकाजा है कि सरकारें डेटा सुरक्षा पर अपना ध्यान फोकस करें। सिर्फ आतंकी घटनाओं और अपराधों की रोकथाम में ही नहीं , नागरिकों की रोजमर्रा की जिंदगी में अनावश्यक दखल को रोकने जिम्मेदारी भी सरकारों को उठानी होगी।

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