एक मुलाक़ात ... रणथम्भौर राजा के साथ
- विशाल सूर्यकांत शर्मा
अलसुबह के वक्त हम निकल पड़े रणथम्भौर के जंगल में। कंकरीट के जंगलों की काली सड़क से निकल कर हम आगे बढ़ रहे हैं कुदरत के उन नजारों के बीच कच्ची पगडंडियों के सफ़र पर। यहां की ओर जाते हुए ही ये अहसास हुआ कि चाहे लाख सुख-सुविधाओं में हम रह ले, लेकिन कुदरत का दुलार अपने आप में अलग अनुभव है। जंगली पेड़-पौधे और खूबसूरत बेल, तोरण की मानिंद मानों हमारी मेहमान नवाज़ी में लगाई गई हों। शहरों में पिंजरों में कैद पड़े परिन्दों की आवाज सुनने के आदि हम लोगों के लिए ये अनूठा अहसास था जब बेफ्रिकी के माहौल में जगह-जगह बैठे परिन्दें अपनी मीठी तान छेड़े हुए दिखे। चीतल,नीलगाय, हिरण, खरगोश सब अपने-अपने तरीके से यहां-वहां घूम रहे थे। उनके लिए सब वही था, रोजमर्रा की जिंदंगी, लेकिन इसे देखने वाले यानि हम लोगों के लिए उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को देखने का क्षण भी बेशकीमती लग रहा था।

ज्यादा दूर नहीं, राजस्थान के सवाई माधोपुर की रणथम्भौर टाइगर सफारी में चंद मिनटों का ही सफर हुआ और अचानक ...हमारा पूरा काफिला रुक गया...आपस में हंसी-ठिठोली करते साथियों को एक कड़ी फटकार ने खामोश कर दिया। कोई कुछ समझ पाता, इससे पहले ड्राइवर की आवाज़ गरजी कि आवाज मत करो...आपके दाहिनी ओर दो टाइगर बैठे हैं। अनायास मिली इस जानकारी से सब कौतूहल भरी निगाहों से उन जीवों को तलाशने लगे जो रणथंभौर की पहचान है। एक जगह आंखें टिकी और गले से चिपकी एक धीमी आवाज निकली...ओह ! 'टाइगर...!!! उन्मुक्त माहौल, अलसाई सुबह में अंगडाई लेती बाधिन टी- १९ और बाघ टी- २८ के नज़ारों ने लोगों का मन मोह लिया। टाईगर को करीब से जानने वाले ड्राइवर और अधिकारियों ने बताया कि टाईगर और टाइग्रेस को एक साथ देखना अपने आप में एक दुर्लभ नज़ारा है। यहां आने वाले देश-विदेश के सैलानी यहां के स्टाफ से ना जाने कितनी मिन्नतें करते हैं, ना जाने कितने दिनों तक इंतजार करते हैं, इस उम्मीद में कि एक ना एक दिन रणथंभौर का राजा यानि टाइगर, अपनी जिंदगी में उऩ्सेहें झांकने की इजाजत दे देगा। लेकिन राजा तो राजा ठहरा, हर किसी की मन चाही मुराद तो पूरी कर नहीं सकते। लेकिन हम उन खुशकिस्मत लोगों में से एक थे जिन्हें रणथम्भौर के राजा और रानी दोनों ने एक साथ दिखाया अपना रुबाब, अपना खास अंदाज। घूरती आंखें, दहाड़ और गज़ब की फूर्ती ...सब कुछ अनोखा और अब तक अनदेखा...

( फोटो बेवसाइट्स से)
चंद पलों तक टाइगर को निहार कर लगा कि ये अहसास डिस्कवरी चैनल में देखने से तो बिल्कुल नहीं आता और ना ही अपने शहर के जू में जाकर आप ये रोमांच महसूस कर सकते हैं। चंद फीट के फासले पर अगर आपको टाइगर अपने सिर्फ दर्शन करवा रहा है तो इसे एक अहसान ही मानिए क्योंकि इतने फासले को तो ये पलक झपकते ही पार कर आपके सामने भी खड़ा हो सकता है। शायद इतनी देर में तो आप और हम टीवी का रिमोट बटन नहीं दबा सकते।
इन नजारों को देखकर अहसास हो गया कि क्यों लोग रणथम्भौर के जंगलों में दिन बीताना पसंद करते हैं ???
लोग कहते हैं रणथम्भौर में कई दिन बीताने के बाद भी टाइगर नहीं दिखता और दिख भी जाए तो वो कुदरती माहौल में नहीं दिखता। लेकिन इसे हमारी किस्मत ही कहिए कि एक नहीं बल्कि दो टाईगर दिखे। एक जो़ड़े में, एक जगह पर। कैमेरों की फ्लैश, गाड़ियों की आवाज, लोगों की खुसफुसाहट सब कुछ नजर अंदाज कर टाईगर ने दिखाई अपनी जिंदगी...अपने अंदाज में। रणथम्भौर जाएं तो जोगी महल में जाकर रणथम्भौर के पूरे नजारे को जरूर देखिए, हो सकता है कि पीछे बने तालाब में आपको कोई ना कोई जंगली जानवर फिर नज़र आ जाए या फिर किस्मत के धनी है तो टाइगर फिर दिख जाए !!! रणथम्भौर का रोमांच महसूस कर वापस घर की और लौेटे तो मन में ये बात जरूर सोंचिए कि टाइगर वास्तव में कहां होने चाहिए !!! सर्कस में इनका प्रर्दशन बंद करवा कर वन्यजीव संरक्षण का स्वांग रचने वाली सरकारों ने इन्हें जू में रखकर दिखाना शुरु कर दिया। क्या रणथम्भौर का राजा टाइगर दस बाई दस की कोटरी में आपको पसंद आएगा...??? क्यों ज़रूरी है कि हम टाइगर को अपने शहर में क़ैदियों की मानिंद रखें ??? क्या वाकई सिर्फ इन्हें देखने भर की जिद में हम इन्हें बंधक बनाकर रख सकते हैं ???
ऊपर वाले से सभी को कुछ ना कुछ नियामत दी है। रणथम्भौर में विचरण करते टाइगर की जिंदगी उसकी अपनी है, जीने का अंदाज अपना है। आपका बस सिर्फ इतना भर हक़ हो सकता है कि उन्हें उनके कुदरती माहौल में अगर ये खुद इजाजत दें तो पूरे सम्मान की भावना के साथ देखिए और फिर लौट आईए।
और हां, रणथम्भौर जाएं तो टाइगरमैन फतह सिंह के बारे में जानना मत भूलिएगा ...!!! वो अब जिंदा तो नहीं, लेकिन जंगल की हलचल में आज भी फतह सिंह की जिंदादिली के किस्से सुनाने वालों की कमी नहीं है !!!
( विशाल सूर्यकांत शर्मा, जर्नलिस्ट) -*-